देश की सबसे प्रतिष्ठित औद्योगिक समूहों में से एक, Tata Group, अभी एक बड़े अंदरूनी विवाद का सामना कर रही है। एक हालिया फैसला सामने आया है जिसमें Tata Trusts ने अपने बोर्ड सदस्यों में बदलाव करने का निर्णय लिया जिसमें Mehli Mistry को हटाया गया है, जो कि समूह की नियंत्रण-संस्थाओं में एक महत्वपूर्ण पद पर थे। यह निर्णय 2024 में समूह के बुजुर्ग अध्यक्ष Ratan Tata के निधन के बाद आया है, और यह पुराने ‘कंसेंसस-पर आधारित बोर्ड’ मॉडल से हटकर एक नए रणनीतिक दौर की ओर संकेत करता है। इस विवाद का मुख्य केंद्र है कि Tata Trusts — जो कि Tata Sons का लगभग 66 % हिस्सा नियंत्रित करती है — ने minority शेयरधारक Shapoorji Pallonji Group (जे 18% हिस्सेदारी) के साथ भविष्य-निर्णय और प्रतिनिधित्व को लेकर असहमति जताई है। मामला तब और गंभीर हुआ जब वित्त मंत्री Nirmala Sitharaman एवं गृह मंत्री Amit Shah ने समूह को स्थिति सुलझाने का निर्देश दिया—यह बड़ा संकेत है कि भारतीय सरकार उद्योग-गवर्नेंस एवं कॉर्पोरेट पारदर्शिता को लेकर कस रही है। विश्लेषकों के मुताबिक, यह मामला सिर्फ Tata समूह का आंतरिक मसला नहीं है — बल्कि भारत की पारिवारिक-स्वामित्व वाले बड़े व्यापार-होल्डिंग्स के नियंत्रण, बोर्ड-अधिकार और नियामकीय चुनौतियों को नया आयाम देता है। यह सन्दर्भ इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि निवेशक-विश्वास, शेयर-बाजार पर असर और विदेशी पूँजी प्रवाह इस तरह के उच्च-स्तरीय कॉर्पोरेट विवादों से प्रभावित हो सकते हैं।Tata समूह ने अब तक सार्वजनिक रूप से इस फैसले पर विस्तृत टिप्पणी नहीं दी है, लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि 11 नवम्बर आधारित बोर्ड बैठक आगामी दिशा-निर्देश तय करेगी—जहाँ समूह का नया नेतृत्व-विकल्प सामने आ सकता है और बाहर-से निवेशकों व भागीदारों को भरोसा दिलाया जाएगा।






