नई दिल्ली : बांग्लादेश में हिजबुल तहरीर नाम का एक कट्टरपंथी संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहा है. इसको लेकर युनूस सरकार की आलोचना हो रही है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वहां की सरकार खुद इसे अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दे रही है.हिजबुल तहरीर पर 2009 में शेख हसीना की सरकार ने प्रतिबंध लगाया था. उन्होंने इसे एक आतंकवादी संगठन करार दिया था. हिजबुल तहरीर पर पाकिस्तान, तुर्की, ब्रिटेन और जापान जैसे देशों ने भी पाबंदी लग रखी है. हालांकि, यह संगठन अमेरिका और कनाडा में कानूनी रूप से सक्रिय है.
इस संगठन का मकसद खिलाफत स्थापित करना रहा है. यह पूरी दुनिया में इस्लामिक राज्य स्थापित करना चाहता है. इस समय इसका जो भी विरोध प्रदर्शन चल रहा है, इसका मकसद भी वही है. वह चाहता है कि बांग्लादेश में शरिया कानून जल्द से जल्द लागू हो.खिलाफत का अर्थ होता है- खलीफा का शासन. इस्लाम में खलीफा को पैगंबर मोहम्मद का उत्तराधिकारी माना जाता है. यानी खलीफा एक तरह से धर्मगुरु हैं. संगठन के प्रदर्शन से पहले ढाका पुलिस ने चेतावनी दी थी कि वह कोई भी प्रदर्शन न करे. पुलिस ने यह भी कहा था कि यदि वह लगातार प्रदर्शन करती रही तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा.उनके प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस ने कई जगहों पर बल का भी प्रयोग किया है. इसके बाद भी विरोध जारी है.जब तक बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार थी, तब तक इस संगठन के कर्ताधर्ता दिखाई नहीं दे रहे थे. लेकिन यूनुस सरकार के आने के बाद उन पर से पाबंदियों में ढील दी गई और उसके बाद से संगठन के लोग सक्रिय हो गए हैं.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यूनुस सरकार के संरक्षण में इस संगठन ने अपना भर्ती अभियान भी चलाया है.शेख हसीना सरकार में उच्च पदों पर रहने वाले नेताओं ने हिजबुल तहरीर को लेकर चिंताएं प्रकट की हैं. उनका कहना है कि हसीना सरकार के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन में भी इस संगठन की बड़ी भूमिका थी. उऩके अनुसार वे अब चरमपंथी गतिविधियों में लिप्त हैं. वह तालिबानीकरण की राह पर हैं.उन्होंने कहा कि जब से हसीना सरकार हटी है, तभी से इस संगठन ने छात्र आंदोलन की आड़ में अपने संगठन को आगे बढ़ाया है. वे अपने संगठन का विस्तार कर रहे हैं. नए नए युवाओं को जोड़कर उन्हें चरमपंथी गतिविधियों में लगा रहे हैं. हिजबुल तहरीर ने भारत विरोधी पदर्शन में भी हिस्सा लिया है.दूसरी ओर यह भी खबर है कि जिन छात्रों ने हसीना सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में भाग लिया था, उन्होंने भी एक राजनीतिक पार्टी बना ली है. इसका नाम नेशनल सिटिजन पार्टी रखा गया है. खबर है कि वह चुनावों में हिस्सा भी लेगी. हसीना की पार्टी अवामी लीग को आशंका है कि उसे खत्म करने के लिए ही इस पार्टी को बनाया गया है.
क्योंकि अवामी लीग को छोड़ दें, तो बांग्लादेश में सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बीएनपी की है. सिटिजन पार्टी ने अपनी नींव रखते हुए सर्वधर्म समभाव की बात कही है. इसलिए उसने अपने कार्यक्रम में सभी धर्म ग्रंथों का पाठ भी करवाया था.शेख हसीना सरकार के खिलाफ क्यों हुआ था विरोधहसीना सरकार ने सरकारी नौकरी में 30 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी थी. यह आरक्षण उन लोगों को दिया गया था, जिनके परिवार वालों ने 1971 की आजादी के आंदोलन में भागीदारी की थी. हालांकि, सरकार ने इसे रद्द कर दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही इसे दोबारा से बहाल किया, विरोध फिर से शुरू हो गया था. बांग्लादेश 1971 में अस्तित्व में आया था. उस समय वह पाकिस्तान का हिस्सा था.आपको बता दें कि हसीना सरकार के खिलाफ छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व नाहिद इस्लाम के पास था. मो. यूनुस ने उन्हें इनफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग विभागों का सलाहकार नियुक्त किया था.