नई दिल्ली : अतीत की कहानियां भविष्य संवार सकती हैं। आपके पास संघर्ष की कहानियां हैं। जीवन के अनुभव हैं। असफलता के किस्से हैं और सफलता की खुशियां भी। आप अपने घर में बच्चों को प्रेरित करने के लिए अपनी कहानियां उन्हें सुनाती हैं क्या? सुनाएं, उन्हें नई दिशा मिलेगी।
पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अक्सर अपने संबोधन में माता-पिता के जीवन अनुभवों का जिक्र करते थे। वे बताते थे कि जब भी उन्हें कोई कार्य असंभव-सा प्रतीत होता, तो माता-पिता और परिवार द्वारा सुनाए गए किस्सों, कहानियों और उनके अनुभवों को याद करते। इससे उनको अपने हर काम को संभव बनाने के लिए प्रेरणा मिलती थी। परिवार के अभावों-परिस्थितियों और अभिभावकों के जीवन की कहानियों ने उन्हें यह मुकाम हासिल करने में सबसे ज्यादा मदद की।
इसी महीने की शुरुआत में ग्लोबल पैरेंट्स डे मनाया गया। हमारे देश में हमेशा से बच्चों के व्यक्तित्व विकास में परिवार की अहम भूमिका रही है और मानी गई है। संयुक्त राष्ट्र ने भी बच्चों के पालन-पोषण में माता-पिता की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देने और माता-पिता की बच्चों के प्रति प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने के लिए वर्ष 2012 से ग्लोबल पेरेंट्स डे मनाने की शुरुआत की। वास्तव में माता-पिता के जीवन और उनके अनुभव बच्चों के व्यक्तित्व को सही आकार देने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। यही वजह है कि इन दिनों पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ समय बिताने और जो कुछ उन्होंने अपने जीवन में अनुभव किया है, उसे कहानियों के रूप में सुनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
कुछ शोध भी इस ओर इशारा करते हैं कि माता-पिता को अपने जीवन के किस्से और पारिवारिक कहानियां बच्चों को जरूर सुनानी चाहिए। इससे बच्चे न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि उनकी परिस्थिति को भी समझ पाते हैं। वहीं माता-पिता ने जो अनुभव अपने जीवन में पाया है, उससे सीख ले पाते हैं।
भावनात्मक जुड़ाव
अमेरिका के नेवादा विश्वविद्यालय में पैरेंट्स और बच्चों की बॉन्डिंग पर अध्ययन किया गया। इसमें अपने जीवन से जुड़ी कहानियां सुनाने वाले और जीवन अनुभव नहीं बताने वाले लोगों को शामिल किया गया। अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार, जिन माता-पिता ने बच्चों को अपने जीवन के अनुभव बताए, उनके बच्चों ने ज्यादा अच्छे तरीके से सामने आई कठिन परिस्थितियों का सामना किया।
वास्तव में पारिवारिक जीवन की कहानियां या परिवार की परिस्थितियों के बारे में बच्चों को सुनाई गईं कहानियां उन्हें सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। पारिवारिक कहानियां बच्चों को यह समझाने में मदद करती हैं कि असल में वे कौन हैं। किन हालात में उनके माता-पिता आज यहां तक पहुंचे हैं, साथ ही किस परिवार और विचारधारा से उनका नाता रहा है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि जब माता-पिता पारिवारिक कहानियां साझा करते हैं तो बच्चे अपने परिवार की भलाई के बारे में सोचते हैं। वे भावनात्मक स्तर पर मजबूत होते हैं। उनमें चिंता या घबराहट का स्तर भी कम हो जाता है। वे तनाव से बेहतर ढंग से निपटने में सक्षम हो पाते हैं। इससे परिवार के भीतर भावनात्मक जुड़ाव बनाने में मजबूती मिलती है।
लक्ष्यों को पाने की प्रेरणा
टीवी और फिल्म स्क्रिप्ट राइटर कल्याण आर. गिरी बताते हैं, “मैंने मां के माध्यम से जाना कि मेरी पढ़ाई पूरी कराने के लिए उन्होंने कर्ज लिया था। मेरी बहनों ने मेरे भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए अपनी कई इच्छाओं का त्याग कर दिया। यदि मैं इन पारिवारिक बातों को नहीं जान पाता तो परिवार के लिए उतना प्रतिबद्ध नहीं हो पाता, जितना मैं आज हूं।”
परिवार द्वारा उठाई गईं इन परेशानियों ने कल्याण के जीवन की दिशा बदल दी। कहने को तो अधिकतर बच्चे अपने पैरेंट्स को ही रोल मॉडल मानते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में बच्चे यह नहीं जान पाते हैं कि उनके जीवन को सुगम बनाने के लिए माता-पिता ने उन्हें ये सुविधाएं किस तरह मुहैया कराईं। उनकी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए पैरेंट्स ने अपनी इच्छाओं को कितना दबाया और क्या-क्या त्याग किया? बच्चों को फाइनेंशियल स्टेबिलिटी देने के लिए उन्हें कितनी मेहनत करनी पड़ी?
इसलिए अगर आप बच्चों को एक अच्छे मुकाम पर देखना चाहती हैं और उनका रोल मॉडल बनना चाहती हैं तो उन्हें अपने अनुभवों के बारे में जरूर बताएं। इससे बच्चों को आपके त्याग की अहमियत पता चल सकेगी। ये बातें जानने के बाद वे अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत भी करेंगे।
पारिवारिक जड़ों से जुड़ाव
बचपन से मेट्रो सिटी कोलकाता में रहने वाली सॉफ्टवेयर इंजीनियर सुनिधि को यह बात पता ही नहीं थी कि उसकी परिवारिक जड़ें कहां से जुड़ी हैं। एक दिन बातों-बातों में उनकी मां ने सुनिधि को बताया कि किस तरह वे और उसके पापा उत्तर प्रदेश के एक गांव से अपनी जमा-पूंजी लेकर शहर आए। यहां आकर उन लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ी।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, माता-पिता जब अपने गुजरे दिनों को बच्चों के सामने साझा करते हैं तो उन्हें पारिवारिक विरासत और अपनी जड़ों के बारे में पता लगता है। उनके द्वारा बताई गई कहानियों से ही आगे की पीढ़ी जान पाती है कि उसके पूर्वजों ने किस तरह एक छोटे गांव से आकर शहर में अपनी जगह बनाई। इससे बच्चे अपने परिवार के इतिहास और परंपराओं को भी जान पाते हैं।
दूर होती है हताशा
परिवार में माता-पिता के अलावा कई अन्य सदस्य भी होते हैं। कभी-कभी उनके द्वारा साझा की गई कहानियां भी बच्चों के सफल भविष्य को गढ़ने में मदद करती हैं। उत्तर प्रदेश के झांसी की रहने वाली डॉ. अनिता सेठी बताती हैं कि उनकी बहन डॉक्टर हैं। एक दिन उसके पास कैंसर का मरीज आया। बहन ने उससे पूछा, “तुम्हें तो कैंसर था?” उस मरीज ने झट से जवाब दिया, “डॉक्टर, आप जानती हैं कि मुझे कैंसर था, जो अब नहीं है। यह बहुत पहले की घटना है। अब मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं। फिर पुरानी घटना को क्यों याद करना? बीती हुई बातों को याद करने से सिर्फ कष्ट होता है। व्यक्ति आगे बढ़ने के बजाय पीछे की ओर चला जाता है।”
बहन की बताई यह कहानी डॉ. अनिता के दिल को छू गई। उन्होंने खाने की टेबल पर अपने बच्चों से यह कहानी साझा की। डॉ. अनिता की बेटी, जो उस समय परीक्षा में आए कम नंबरों से परेशान थी, इस कहानी को सुनते ही एकदम उत्साह से भर गई। उसने अपनी मां से उसी समय वादा किया कि परीक्षा में उसके जो कम नंबर आए हैं, उनके बारे में वह नहीं सोचेगी। इसके बाद वह निरंतर प्रयास करती रही और फिर एमएससी में फर्स्ट आई।
उनका आत्मविश्वास बढ़ता है
लेखिका डॉ. उषा अरोड़ा बताती हैं, माता-पिता के जीवन अनुभव बच्चों को मजबूत बनाते हैं। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। इसलिए बच्चों को सही दिशा देने के लिए हर माता-पिता को समय-समय पर उन्हें अपने जीवन के संघर्षों की कहानियां जरूर सुनानी चाहिए।
मेरे घर-परिवार की स्थिति ठीक-ठाक थी। कभी जीवन में ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा। लेकिन बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान बीएचयू के संस्थापक मदनमोहन मालवीय के जीवन से मैं काफी प्रभावित हुई थी। लोगों से दान लेकर इतने बड़े विश्वविद्यालय की स्थापना करने वाले महामना मालवीय जी के जीवन की कहानियां जब मैंने अपने बेटे को सुनाईं तो वह भी प्रभावित हुआ। वह दृढ संकल्प और इच्छाशक्ति के साथ मेट्रो शहर से अपने छोटे से शहर अतरौली वापस आ गया। उसने न सिर्फ अपने बाग-बगीचों को संभाला, बल्कि मन-मुताबिक काम को भी अंजाम दिया।
उनके अनुभवों से मिला मुकाम
हॉकी प्लेयर रितु रानी कहती हैं, मैं नेशनल हॉकी टीम की कप्तान रह चुकी हूं। मैंने भारत की ओर से टीम का नेतृत्व करते हुए वर्ष 2014 में एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता। मेरी कप्तानी में भारतीय टीम 2014-15 के महिला हॉकी वर्ल्ड लीग के सेमीफाइनल में पांचवें स्थान पर आ पाई। मैंने नौ वर्ष की उम्र में हॉकी खेलना शुरू किया था। मेरा भाई भी हॉकी खेलता था। भाई इस खेल में अपना स्थान पुख्ता करने के लिए लगातार कोशिश करता रहता था। उसके मुंह से हॉकी के मुकाबलों की रोमांचक कहानियां सुनकर ही मैंने हॉकी खेलना शुरू किया।
यदि मैं अपने घर में पिता और भाई से हॉकी के बारे में नहीं सुनती तो कभी भी इस खेल से नहीं जुड़ पाती। परिवार के लोगों से इस खेल के अनुभव सुनने पर ही मैं इस खेल से जुड़ पाई और यह मेरा पसंदीदा खेल बन गया। उनके जीवन की कहानियों ने हमेशा मुझे विषम परिस्थितियों से लड़ने के लिए हौसला दिया। साथ ही माता-पिता द्वारा सुनाए गए अनुभव जीवन और इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे।
बच्चों की समझ बढ़ती है
वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. ईशा सिंह बताती हैं, किसी भी व्यक्ति की मेंटल हेल्थ की मजबूती के लिए अपनों से भावनात्मक जुड़ाव होना बेहद जरूरी है। यह जुड़ाव पारिवारिक मूल्यों की समझ से विकसित होता है मगर बच्चों में पारिवारिक मूल्यों की समझ तभी विकसित हो सकती है, जब वे माता-पिता के संघर्षों और उनके जीवन के बारे में जानते हों। इससे वे अपने पैरेंट्स के जीवन मूल्यों को समझ पाते हैं। ये पारिवारिक मूल्य उनकी समझ को बढ़ाने में मदद करते हैं। साथ ही किस्से और कहानियां उनके व्यक्तित्व को निखारने और उनके विकास में मदद करते हैं। माता-पिता द्वारा बताए गए अनुभव उनके जीवन में प्रेरणा का स्रोत बनते हैं और उन्हें अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।