नई दिल्ली : आज की भागती दौड़ती जिंदगी में तनाव जीवन का हिस्सा बन गया है। तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। तो आज के समय में तनाव को कैसे दूर रखें और सफल कैसे हों, इस पर मशहूर आध्यात्मिक वक्ता अमोघ लीला प्रभु ने बड़ी अहम बातें साझा की।
संवाद कार्यक्रम में इस्कॉन से जुड़े आध्यात्मिक वक्ता अमोघ लीला दास प्रभु ने ‘कामयाबी की राह’ विषय पर संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने सफलता, रिश्तों और तनाव जैसे मुद्दों पर अपने विचार साझा किए और उनसे निपटने के लिए टिप्स भी दिए। अमोघ लीला प्रभु ने बेहद आसान भाषा में उदाहरणों के साथ गूढ़ बातों को इतनी आसानी से समझाया कि हर व्यक्ति इन्हें समझ सकता है और अगर ठान ले तो अपने जीवन में उतार भी सकता है। तो पढ़ें उनकी बातें, उन्हीं के शब्दों में।
- आत्म प्रबंधन
सफलता के सीक्रेट में कुछ शब्द छुपे हैं। इनमें सबसे पहला है- एस यानी सेल्फ। इसके मायने हैं आत्म प्रबंधन। अब इसमें आत्म क्या है? खुद को जानना जरूरी है। इससे जुड़े कुछ वेग हैं। पहला है- परउत्कर्ष वेग। यानी दूसरों को आगे बढ़ते हुए देखने पर आने वाली प्रतिक्रिया। यही ईर्ष्या और द्वेष को बढ़ाती है। जब दूसरों से हमें कम मिले तो द्वेष होता है और दूसरों को कुछ भी न मिले, यह भावना आ जाए तो वह ईर्ष्या कहलाती है। हमें दूसरो को आगे बढ़ते देखकर ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, बल्कि प्रेरणा लेनी चाहिए। दूसरा वेग है- द्वंद्व वेग। खुशी और निंदा, दोनों को संभालना जरूरी है। जब तक आप द्वंद्व में स्थिर रहना नहीं सीखेंगे, तब तक आप कामयाब नहीं हो सकते। बुद्धिमान व्यक्ति दूसरों से सीखता है। घास के तिनके से हम विनम्रता सीखते हैं। वह तूफान में झुकना जानता है। वृक्ष से हम सहिष्णुता सीखते हैं। परामर्श, द्वंद्व, दूसरों की प्रगति स्वीकार करना जरूरी है। …यह हुई आत्म प्रबंधन यानी सेल्फ मैनेजमेंट की बात।
- प्रयास प्रबंधन
दूसरी बात है ई यानी एफर्ट्स। प्रयासों का प्रबंधन भी जरूरी है। सोए हुए शेर के मुख में मृग कभी नहीं जाएगा, शेर को प्रयास करने होंगे। आजकल लोग प्रयास नहीं करते। मैंने कम्प्यूटर साइंस सीखा है। पढ़ाई के बाद आपको लैब में जाना होता है, वहां प्रैक्टिस करनी होती है, तब जाकर कोडिंग आती है। सोशल मीडिया की दुनिया ने लोगों से पढ़ना चाहिए। फेसबुक आया तो लोगों के चेहरों के आगे से किताबें हट गईं। लोग फोन में समाधि मुद्रा में होती है। पहले वर्ण व्यवस्था थी, लेकिन वह असल में इसलिए था ताकि आप अपने स्वभाव के अनुसार अपना काम चुनिए। इसमें ऊंच-नीच की बात ही नहीं थी।
- संगति का प्रबंधन
तीसरी बात है- सी यानी कंपनी मैनेजमेंट। आप किनके साथ हैं, इससे आपके व्यवहार का पता चलता है। आप जिंदगी में किन शीर्ष पांच लोगों के साथ जुड़े हैं, इससे आपके व्यक्तित्व का पता चलता है। आइंस्टीन ने सापेक्षता का सिद्धांत दिया था। एक बार उनके ड्राइवर ने उनके जैसा भाषण दे दिया, लेकिन श्रोताओं में से किसी ने ड्राइवर ने सवाल पूछ लिया। उसने कहा कि यह तो आसान है, मेरा ड्राइवर भी जवाब दे देगा। कभी-कभी आपकी जिंदगी में तनाव नहीं रहता, लेकिन फिर तनाव आता कैसा है- संगति से। संगति आपको बना सकती है, बिगाड़ भी सकती है। मौजूदा पीढ़ी में संवेदनशीलता की कमी है। वे गैजेट्स, स्मार्टफोन्स की संगत में रहते हैं, जिनमें संवेदनशीलता ही नहीं रहती। टेक्नोलॉजी खराब नहीं है। वह आपकी मालिक बनेगी तो बिगाड़ेगी, वह आपकी सेवा में रहेगी तो ठीक रहेगी।
- रिश्तों का प्रबंधन
चौथी बात है- आर यानी रिलेशनशिप। कई बार शीर्ष पर पहुंचे लोग बहुत अकेले होते हैं। अमीर लोगों के घर में कमरे ज्यादा होते हैं, लेकिन रहने वाले सिर्फ दो लोग होते हैं। ऐसे लोग रिश्तों को नहीं संभाल पाए। अंगूर गुच्छे में भी मिलते हैं और बिखरे-बिखरे भी मिलते हैं। गुच्छे में मिलने वाले अंगूर की कीमत बिखरे अंगूरों से ज्यादा होती है। चीजें टूट जाएं तो मरम्मत हो सकती है। दिल टूट जाए तो कैसे मरम्मत होगी? हम अक्सर लोगों को माफ नहीं कर पाते। कोई हमें अपशब्द कह दे, हमसे राजनीति करे तो हम उसे माफ नहीं कर पाते। हमारा अहम् हमें ऐसा करने से रोकता है। आपको यह तय करना होगा कि ज्यादा जरूरी क्या है? बहस में जीतना या रिश्तों को संभालना? दूध और पानी के बीच दोस्ती होती है। दूध पानी से कहता है कि तुमने खुद को मुझमें मिला लिया? पानी कहता है कि जब हमें उबाले तो मैं पहले उड़ जाऊंगा। दूध और पानी तभी अलग हो सकते हैं, जब उनमें कोई नींबू निचोड़ देते हैं। कोई भी रिश्ता स्वाभाविक मौत नहीं मरता, अहम् उसकी हत्या कर देता है।
- भावनाओं का प्रबंधन
पांचवीं बात है- ई यानी इमोशंस। भावुकता का प्रबंधन। भावनाएं होना जरूरी है। अब कॉर्पोरेट में आईक्यू और साइकोमैट्रिक टेस्ट के साथ-साथ एसक्यू यानी स्पिरिच्युअलिटी कोशंट टेस्ट भी आ गया है। अब दुनिया को अपनी भावनाओं की नजर से देखते हैं। भावनाएं होना अच्छी बात है, लेकिन उसका प्रबंध करना ज्यादा जरूरी है।
- समय प्रबंधन
छठी बात है- टी यानी टाइम। समय प्रबंधन। आज भारत में औसतन साढ़े पांच घंटे सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं। मंदिर जाने का उनके पास वक्त नहीं है। समय निकलता नहीं है, समय निकालना पड़ता है। कभी वो आपके सामने आकर नहीं कहेगा कि मैं समय हूं, मुझे किसी अच्छी जगह इस्तेमाल कर लो। हम कहते हैं कि श्रीमद् भगवद्गीता पढ़िए तो लोग कहते हैं कि समय नहीं है। अगर आपकी प्राथमिकताएं तय नहीं हैं तो आप गलत चीजों में समय लगाते हैं। अगर भटकाव है तो समय बर्बाद होता रहेगा। हम आठ सेकंड से ज्यादा किसी एक चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। इतना भटकाव हमारे जीवन में है। कोई चीज शुरू या खत्म करनी आसान होती है, उसे बनाए रखना मुश्किल होता है।
श्रोताओं के सवालों के दिए जवाब
अमोघ लीला दास प्रभु ने श्रोताओं के सवालों के भी जवाब दिए। जब उनसे पूछा गया कि आप भाषण की तैयारी कैसे कर सकते हैं तो उन्होंने कहा कि जो हम सुनेंगे, पढ़ेंगे, वही हम बोल पाएंगे। मैं सुनता हूं, पढ़ता हूं, विद्यार्थी के तौर पर रहता है, फिर बोलता हूं।
गुस्से का प्रबंधन कैसे करें, इस पर उन्होंने कहा कि यह तमोगुण की वजह होता है। ऐसे लोगों की नाक पर गुस्सा रखा होता है। तीन तरह के लोगों को गुस्सा आता है। पहले लोग वो होते हैं जो सब कुछ अपने काबू में करना चाहते हैं। लोगों को, परिस्थितियों को अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं।
दूसरी तरह के लोग होते हैं-
परफेक्शनिस्ट। उन्हें सब कुछ दस में से दस चाहिए। नौकरी, घर, गाड़ी सब कुछ उन्हें परफेक्ट चाहिए। ऐसे लोग भूल जाते हैं कि चूक सबसे होती है, उसे स्वीकारना चाहिए। तीसरी तरह के लोग वो होते हैं- जिन्हें मजा चाहिए। उन्हें सब चीजों में मजा चाहिए, ऐसे लोगों को भी गुस्सा आता है। ऐसे लोगों की जिंदगी सजा बन जाती है।
इंजीनियरिंग से आध्यात्मिकता की ओर कैसे आए? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि मुझे लगता था कि मैं बहुत पैसा कमाऊंगा और गरीबों की सेवा करूंगा। फिर मुझे लगा कि लोग शरीर से ज्यादा मन से दुखी हैं। शरीर की सेवा करने वाले कई लोग हैं, मन की सेवा करने वाले कम हैं। इसलिए मन की सेवा करने के लिए मैं यह बना।
खुद का समय प्रबंधन कैसे करते हैं, इस पर उन्होंने कहा कि समय पर सोएं, समय पर उठें और दिन की शुरुआत आध्यात्मिकता के साथ करें। इससे ठहराव आएगा और आप समय प्रबंधन कर पाएंगे।
श्रीकृष्ण की छवि के बारे में पूछने पर अमोघ लीला दास प्रभु ने कहा कि भगवान राम कुछ कलाएं प्रकट नहीं करते, जबकि श्रीकृष्ण सोलह कलाएं जानते थे। जैसे बंसी बजाना। कोई भी भगवान हो, वह लीला करते हैं। हम जो करते हैं वो हमारा कर्म है, प्रभु जो करते हैं, वह लीला है। प्रभु को अगर मक्खन ही पसंद होता तो वह मक्खन बनाने की फैक्ट्री में ही मिलते। यह उनकी लीला है।