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क्या ये सच है, अकबर ने कराया था रामायण का फारसी में अनुवाद, जानें…..

NBTV24 by NBTV24
January 10, 2024
in आज, मध्यप्रदेश
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मध्यप्रदेश:- रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि हैं. रामजी के वनवास से लौटने के बाद रामायण की रचना हुई. इसमें 2400 श्लोक, 500 सर्ग और 7 काण्ड हैं. इसलिए यह कहा जा सकता है कि, रामायण रूपी भगीरथ को पृथ्वी पर उतारने का काम वाल्मीकि द्वारा किया गया.

वहीं तुलसीदास द्वारा लिखित रामायण का नाम रामचरित मानस है. इसकी रचना 17वीं शताब्दी के अंत में हुई. गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधि में इसकी रचना की. वहीं वाल्मीकि रामायण संस्कृत में लिखी गई थी. इसके रचयिता वाल्मीकि को आदि कवि भी कहा जाता है. इसके बाद अलग-अलग काल में और विभिन्न भाषाओं में रामायण की रचना हुई. 12वीं सदी में तमिल भाषा में कम्पण रामायण, तेरहवीं सदी में थाई भाषा में लिखी रामकीयन और कम्बोडियाई रामायण, 15वीं और 16वीं सदी में उड़िया रामायण और कृतिबास की बंगला रामायण भी प्रसिद्ध है..

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’
भारत ऐसा मुल्क है जो गंगा-जमुनी तहजीब कि मिसाल पेश करता है. यहां लोग मजहब के नाम पर मतभेद करने के बजाय एकजुट होते हैं. अल्लामा इकबाल की पंक्ति ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ को भारत चरितार्थ करता है. इसलिए भारत को राम-रहीम का मुल्क और मजहबों का गुलदस्ता कहा जाता है. यहां हिंदू गुरु गोविंद की वंदना भी करते हैं, सिख मोहम्मद के बारे में भी जानते हैं और मुसलमान भगवान श्रीराम की जीवनगाथा भी जानते हैं. तभी तो विभिन्न भाषाओं के साथ ही रामायण का तर्जुमा अनुवाद फारसी में भी किया गया है. मुगल सम्राट अकबर के आदेश पर ‘मुल्ला अब्दुल कादिर बदायुनी’ ने पहली बार रामायण का 1591 में फारसी भाषा में अनुवाद किया. ये फारसी, अरबी और उर्दू भाषा के साथ संस्कृत के भी प्रकांड विद्वान थे.

हिंदू साहित्यों में थी मुगलों की रुचि
मुगल कला और साहित्य के संरक्षक थे. मुगलकाल में मुगलों की रुचि न सिर्फ मुगल साहित्यों में थी बल्कि हिंदू साहित्य में भी थी और वे हिंदू साहित्य को काफी महत्व भी देते थे. इसका उदाहरण है ‘रामायण’ का फारसी में अनुवाद कराना. रामायण महाकाव्य का फारसी में अनुवाद का श्रेय मुगलकाल सम्राट अकबर को जाता है. अकबर भारतीय साहित्य और संस्कृति के कायल थे.

अकबर ने क्यों कराया रामायण का फारसी का अनुवाद
मुगलकाल सम्राट अकबर 1542-1602 को भारतीय साहित्य और संस्कृति से काफी प्रेम था. इसलिए उन्होंने भारतीय साहित्यों को फारसी में जानने वालों और विशेषरूप से मुस्लिमों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए रामायण का फारसी में अनुवाद कराया. सम्राट अकबर के समय फारसी मुगल भारत की दरबारी भाषा थी. आपको बता दें कि, संस्कृत ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत आदि के अनुवाद की शुरुआत कराने वाले अकबर पहले मुस्लिम शासक नहीं थे. लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि, अकबर के निर्देशन में ही हिंदू विश्व के महत्वपूर्ण साहित्यिक और धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में मुगलों की रुचि जागी और इनके अनुवादन के लिए एक मतलबखाना फतेहपुर-सीकरी में स्थापित किया गया, जिसमें महाभारत, रामायण और योगवाशिष्ट समेत कई खास हिंदू ग्रंथों के अनुवाद किए गए.

किसने किया रामायण का फारसी अनुवाद
1584 में मुगल सम्राट अकबर के आदेश से मुल्ला अब्दुल कादिर बदायुनी ने पहली बार फारसी में रामायण का अनुवाद किया. बदायुनी एक रूढ़िवादी मुस्लिम थे. लेकिन अकबर का आदेश पाकर उन्हें इसके लिए मानना पड़ा और रामायण का अनुवादन करना पड़ा. बदायुनी द्वारा पहली बार वाल्मीकि रामायण का फारसी में अनुवाद किया गया था. इसके लिए उन्हें चार साल लग गए. रामायण को फारसी में लिखने के दौरान अब्दुल बदायुनी ने एक ब्राह्मण देबी मिश्र को भी नियुक्त किया था. इसमें एक विशेष बात यह थी कि, संस्कृत रामायण में कभी चित्रण नहीं किया गया. लेकिन फारसी अनुवाद वाले रामायण में चित्रकारों द्वारा लघु चित्रों के साथ इसमें चित्रण भी किया गया.

फारसी में कितनी बार हुआ रामायण का अनुवाद
मुगल सम्राट अकबर के बाद भी फारसी भाषा में रामायण का अनुवादन किया गया. शाहजहां के शासनकाल में फारसी में रामायण के दो अनुवाद मुल्ला शेख सादुल्लाह और गुलामदास द्वारा किए गए. फारसी में लिखी रामायण की एक प्रति आज भी रामपुर रजा लाइब्रेरी में मौजूद है.

रामायण का एक अन्य दुर्लभ फारसी अनुवाद शाहजहां के बेटे दारा शिकोह द्वारा किया गया. फिलहाल ये पांडुलिपि जम्मू के व्यापारी शाम लाल अंगारा के पास मौजूद है. इस रामायण की शुरुआत ‘बिस्मिल्लाह रहमान एक रहीम’ से होती है. कहा जाता है कि अब तक भारत-फारसी साहित्य में 23 से अधिक बार रामायण लिखी जा चुकी है।

Tags: Akbar had got Ramayana translated into PersianIndiaIs it trueToday latest newsToday news
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