नई दिल्ली : दो दिन बाद दुर्लभ घटना होने जा रही है। खगोलीय घटनाओं में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह घटना बेहद खास है। 18 सितंबर को लगने जा रहा चंद्र ग्रहण बेहद खास है। हालांकि, यह चंद्र ग्रहण एक आंशिक ग्रहण है। इसे दुनिया के कई जगहों पर देखा जाएगा। जिस समय सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आते हैं, तो चंद्र ग्रहण लगता है, क्योंकि पृथ्वी के कारण सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर नहीं पड़ता है। इस घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
दरअसल, चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा एक उपग्रह है, जो धरती का चक्कर लगाता है। जब सूर्य और चंद्रमा के बीच धरती आ जाती है, तो सूर्य की रोशनी चंद्रमा तक नहीं जा पाती है। इससे धरती की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इस खगोलीय घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है। पूर्णिमा के दिन यह खगोलीय घटना होती है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक, प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा पड़ती है।
चंद्र ग्रहण का समय
18 सितंबर यानी बुधवार को भारतीय समय के मुताबिक, सुबह 6 बजकर 11 मिनट पर लगेगा, जो सुबह 10 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगा। यह ग्रहण कुल 4 घंटे 6 मिनट तक रहेगा। कई विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियां और दूसरे खगोलीय घटनाओं पर नजर रखने वाली वेबसाइट इस खगलोयी घटना सीधा प्रसारण करेंगी।
तीन प्रकार के होते हैं चंद्र ग्रहण
दरअसल, चंद्र ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में किस तरह हैं। आंशिक चंद्र ग्रहण, पूर्ण चंद्र ग्रहण और उपछाया चंद्र ग्रहण होता है। पूर्ण चंद्र ग्रहण तब लगता है, जब पूरे चंद्रमा की सतह पर धरती की छाया पड़ती है।
आंशिक चंद्र ग्रहण तब लगता है, जब चांद का एक भाग पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है। चंद्रमा के धरती की तरफ वाले हिस्से पर धरती की छाया काली दिखाई देती है। कटा हिस्सा दिखाई देता है, तो वह इस पर निर्भर करता है कि किस प्रकार सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में हैं। उपछाया चंद्र ग्रहण के दौरान धरती की छाया का हल्का बाहरी भाग चंद्रमा की सतह पर पड़ता है। इस ग्रहण को देखना कुछ मुश्किल होता है।
चंद्र ग्रहण के साथ दिखेगा सुपरमून
चंद्र ग्रहण सिर्फ पूर्णिमा के दिन ही होता है, लेकिन इस बार पूर्णिमा बेहद खास है। सितंबर विषुव के करीब होने के कारण यह गर्मियों की आखिरी पूर्णिमा होगी। इस दौरान चंद्रमा सामान्य पूर्णिमा की अपेक्षा बड़ा नजर आएगा। इसके कारण इसे सुपरमून भी कहा जाता है। इसे हार्वेस्ट मून भी कहा जाता जाता है। बहुत पहले इसे हार्वेस्ट मून का नाम दिया गया था।
जब सूर्य उत्तरी से दक्षिणी गोलार्द्ध में प्रवेश करता है, तो शरद विषुव कहा जाता है। शरद ऋतु की शुरुआत के अलावा यह फसलों की कटाई का समय होता है। जब बिजली नहीं थी, तो किसान चंद्रमा की रोशनी में फसल काटने के लिए निर्भर होते थे। इसीलिए किसान इसे हार्वेस्ट मून कहते थे। सुपरमून या हार्वेस्ट मून यह खगोलीय शब्द नहीं है। शरद विषुव के करीब पड़ने वाली पूर्णिमा को यह कहा जाता है। इस समय चंद्रमा धरती के सबसे पास होता है, जिससे यह आकाश में सामान्य की तुलना में बड़ा दिखाई देता है।
क्या भारत में नजर आएगा चंद्र ग्रहण?
18 सितंबर को लगने वाला चंद्र ग्रहण यूरोप, एशिया के ज्यादातर हिस्सों, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक, अंटार्कटिका के सीमित क्षेत्रों में दिखाई देगा। यह ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा, लेकिन मुंबई समेत कुछ पश्चिमी शहरों में नजर आ सकता है। हालांकि, इसकी बेहद कम संभावना है। इसके बाद चंद्रमा क्षितिज के नीचे चला जाएगा, जिसकी वजह से यह भारत में नजर आना बंद हो जाएगा।