जयपुर : प्रेमचंद बैरवा ने राजस्थान के उप-मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है। इस बार प्रदेश में दो उप-मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। जानिए उप-मुख्यमंत्री बैरवा के पास कितनी संपत्ति है और पहले उनका जीवन कैसे बीता।
भाजपा विधायक प्रेमचंद बैरवा ने शुक्रवार को जयपुर के अल्बर्ट हॉल में राजस्थान के उप-मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है। इस दौरान मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे। बैरवा एससी समाज से आते हैं। वे मौजमाबाद तहसील के श्रीनिवास पुरम के रहने वाले हैं और दलित परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बैरवा ने विधानसभा चुनाव 2023 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर एससी सीट दूदू से चुनाव लड़ा और विधायक बन गए। 54 साल के प्रेमचंद बैरवा शैक्षिक योग्यता में डॉक्टरेट हैं। पहले उनका पेशा खेती और व्यापार रहा है।
दरअसल, मंगलवार को हुई भाजपा विधायक दल की बैठक में प्रेमचंद बैरवा और दीया कुमारी को उप-मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया गया था। दूदू जिले के श्रीनिवासपुर गांव में जन्मे प्रेमचंद बैरवा को उप-मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा के बाद पूरे गांव में जीत का जश्न शुरू हो गया था। लोग उनके पैतृक निवास पर पहुंचे। फिर उनके बड़े भाई चिरंजीलाल बैरवा और उनकी बहन शांति देवी सहित परिवार के जगदीश, पुष्पा और सुनीता का मुंह मीठा कराया। इसके बाद उन्हें बधाई देने पहुंचे लोगों का तांता लग गया।
दूदू राजस्थान प्रदेश का एक विधानसभा क्षेत्र है। इस निर्वाचन क्षेत्र से साल 2018 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी बाबूलाल नागर जीते थे। दूदू राजस्थान के जयपुर जिले के अंतर्गत आता है। विधानसभा चुनाव 2018 में निर्दलीय प्रत्याशी बाबूलाल नागर ने भाजपा प्रत्याशी डॉ. प्रेमचंद बैरवा को 14779 वोटों के अंतर से पराजित कर दूदू सीट जीती थी।
गौरतलब है कि कांग्रेस की गहलोत सरकार ने दूदू को नया जिला बनाया था। जयपुर ग्रामीण का हिस्सा रहे इस क्षेत्र से कांग्रेस के बाबूलाल नागर चार बार विधायक रह चुके थे। पिछले नौ चुनावों में कांग्रेस के खातें में 7 जीत और बीजेपी को दो बार सफलता मिली थी। 2018 से 2023 में कांग्रेस के विधायक बाबूलाल नागर मुख्यमंत्री के करीबी नेताओं में से एक माने जाते थे। इसका फायदा उन्होंने दूदू को जिले का दर्जा दिलाने में भी लिया था। जबकि बीजेपी जिले की घोषणा को महज कागजी बताती रही। भाजपा विकास के नाम पर बाबूलाल नागर को कटघरे में खड़ा करती रही। नागर के सामने एक बार विधायक रहे बैरवा को चुनाव लड़ाया और भाजपा कामयाब हो गई। इससे पहले, प्रेमचंद बैरवा ने साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार हजारी लाल नागर को 33,720 वोटों के अंतर से हराकर दूदू निर्वाचन क्षेत्र जीता था।
बकरी चराई, दूसरों के खेतों में मजदूरी भी की
डॉ. प्रेमचंद बैरवा का जन्म साल 1969 में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। घास-फूस की झोपड़ी वाला घर था। पिता रामचंद्र बैरवा के पास खेती के लिए थोड़ी जमीन थी, जो परिवार को पालने के लिए काफी नहीं थी। इस वजह से प्रेमचंद बैरवा कम उम्र में ही काम करने लगे। के साथ-साथ अपने और दूसरों की खेतों में काम किया करते थे। इसके अलावा बैरवा ने बकरी चराने, मजदूरी करने और सिलाई करने भी काम किया। फिर सिलाई के साथ-साथ कपड़ों के निर्यात का काम भी शुरू कर दिया।
वहीं, इस क्षेत्र का स्थापित व्यापारी बनने से पहले उन्होंने तीन-चार साल तक एजेंट के रूप में भी काम किया। जब पैसा बनने लगा तो प्रॉपर्टी डीलर का भी काम करने लगे, फिर राजनीति में भी उतर गए। कॉलेज के दिनों में ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय हो गए और 24 साल की उम्र में भाजपा में चले गए। यहां भी उन्हें कामयाबी मिलती गई और 2013 में पहली बार विधायक बने।
पेट्रोल पंप और तीन करोड़ के खेत के मालिक हैं बैरवा
शुरुआती जीवन गरीबी में बिताने वाले प्रेमचंद बैरवा अब करोड़ों के मालिक हैं। उनके पास सोना, चांदी, घर, गाड़ी और काफी में जमीन है। वह कृषि योग्य तीन करोड़ रुपये की जमीन के मालिक हैं। 55 लाख रुपये की गैर कृषि भूमि है। प्रेमचंद बैरवा के नौ बैंक खातों में तीन लाख 83 हजार 871 रुपये हैं। खुद के पास दो सौ ग्राम सोना और पत्नी के पास 250 ग्राम सोना है। वहीं, पत्नी के पास लाखों रुपये की गाड़ी है। वह एक पेट्रोल पंप के भी डीलर हैं।
गांव-ढाणियों तक जाकर जनता में बनाई पहुंच
प्रेमचंद बैरवा अपनी सादगी और हर गांव-ढाणी में बूथ लेवल तक मजबूत पकड़ के साथ चुनाव में जीत तय कर पाए। मौजूदा विधायक की एंटी इनकंबेंसी का प्रेमचंद को चुनाव में खासा लाभ मिला। हालांकि उन्होंने बाबूलाल नागर को हराने के लिए बूथ लेवल तक कार्यकर्ताओं की बड़ी टीम खड़ी की और हर गांव और ढाणी में पहुंचकर जनता को सुशासन का विश्वास दिलाया। इसके बाद लोगों में प्रेमचंद बैरवा की लहर बन गई। नतीजा यह हुआ कि नागर की जीत का ग्राफ गिरता गया और बैरवा जीत की सीढ़ी चढ़ते गए।
तीस सालों बाद फिर उप-मुख्यमंत्री
इससे पहले राजस्थान में भाजपा सरकार में कभी दो उप-मुख्यमंत्री नहीं रहे। 1952 से लेकर अब तक प्रदेश में पांच उप-मुख्यमंत्री रहे। इनमें चार कांग्रेस और एक भाजपा की सरकार में बनाए गए थे। वहीं, 2002-2003 में कांग्रेस सरकार में दो डिप्टी सीएम रहे थे। 1993 में भाजपा ने पहली और आखिरी बार हरिशंकर भाभड़ा को प्रदेश का उप-मुख्यमंत्री बनाया था। इस बार पार्टी ने एक उप-मुख्यमंत्री बनाकर 30 साल बाद यह प्रयोग दोहराया। इस बार दो उप-मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। इसलिए यह भाजपा की ओर से एक नई शुरुआत है।