नई दिल्ली : कोई तारीफ करे तो आप शर्मा जाती हैं? शर्मीलेपन के कारण आप अनजान लोगों से बात नहीं कर पातीं। आप गाना अच्छा गाती हैं, लेकिन कोई आपको गाने के लिए बोल दे तो आप झिझक महसूस करती हैं और उसे टालने की हर मुमकिन कोशिश करती हैं। व्यक्तित्व की इस कमजोरी को दूर करना जरूरी है।
छुट्टी के दिन संगीता के सास-ससुर, ननद, देवर तथा अन्य सभी सदस्य आए हुए हैं। सभी मिलकर उसके बेटे अरुण के लिए स्कूल का चुनाव कर रहे हैं। संगीता पढ़ी-लिखी नहीं है, जिस वजह से वह सभी के सामने अपनी राय रखने में झिझक रही है। वह इसलिए भी अपनी बात करने में झिझक और शर्म महसूस कर रही है, क्योंकि जब भी वह कोई बात अपने ससुराल वालों के सामने रखती है तो सभी उस पर हंसने लगते हैं और उसे कह देते हैं कि “तुम जानती ही क्या हो, जो अपनी राय दे रही हो।”
लेकिन जब भी वह सभी के लिए कुछ अच्छा बनाती है तो सब उसकी तारीफ करते हैं, जिस पर वह हल्का-सा मुस्कुराकर शर्मा जाती है। संगीता की सास को उसका यूं शर्माना अच्छा लगता है। इसके साथ ही संगीता हमेशा सामाजिक कार्यक्रमों में जाने और किसी से बात करने में भी शर्माती है। वह अक्सर ऐसी जगहों पर यह महसूस करती है कि वह अच्छी नहीं दिख रही, उसकी साड़ी ठीक नहीं है। वह जब भी लोगों को उसकी तरफ देखते हुए पाती है तो उसे लगता है कि वे उसके बारे में ही कुछ बातें बना रहे हैं, क्योंकि वह अच्छी नहीं लग रही।
क्या शर्मीलापन हमारे व्यक्तित्व से जुड़ी कोई ऐसी चीज है, जिसकी हमें जरूरत होती है? आमतौर पर महिलाओं में शर्मीलापन उनकी चारित्रिक शालीनता मानी जाती है, तो पुरुषों में इसे एक तरह से कमजोरी और आत्मविश्वास की कमी के तौर पर देखा जाता है। हमारा समाज भी हमेशा से यह कहता रहा है कि स्त्री के लिए शर्म गहने के समान है।
स्त्री अगर शर्मीली है तो उसे संस्कारवान समझा जाता है, लेकिन जब वह स्त्री बोलती है, अपनी राय रखती है तो वही लोग उसके चरित्र पर सवाल खड़े कर देते हैं। उसे कैसे चलना है, क्या पहनना है, कितना बोलना है और कैसे हंसना है, ये सब तय करने की कोशिश करते हैं। शील और शर्म ही महिला के चारित्रिक गुण हैं, ऐसा नहीं है। कई मामलों में यही शर्मीलापन उनके लिए मुसीबत बन जाता है। शर्मीले लोग अक्सर दूसरों से अपनी अवास्तविक तुलना करते हैं और यह मानते हैं कि दूसरे लोग उनके बारे में बुरा सोच रहे हैं। यही सोच उनके लिए नए अवसरों को खो देने का कारण भी बनती है।
शर्मीला होना हमारे व्यवहार का एक हिस्सा है, जो कि हम सभी के व्यवहार में होता है। वहीं किसी-किसी में यही शर्मीलापन इतना अधिक होता है कि यह उसकी कमजोरी बन जाता है। जब यह उसकी कमजोरी बनता है तो व्यक्ति लोगों के बीच हंसी का पात्र बन जाता है, जो कि उन्हें खुलकर जीने से भी रोकता है।
बचपन से युवावस्था का सफर और हमारा अनुभव तय करता है कि हम शर्मीले हैं या नहीं। कई बार शर्मीलापन हमारे माता-पिता की वजह से भी व्यवहार में आता है। बचपन में अतिसुरक्षा की आदत बच्चे को इतना कमजोर बना देती है कि उसका आत्मविश्वास डगमगा जाता है। बड़े होने पर आत्मविश्वास की यही कमजोरी शर्मीलेपन को जन्म देती है। यह शर्मीलापन आपको कैसे परेशान करता है? इसके पीछे भी कई मनोवैज्ञानिक कारण हैं, जिसका इलाज भी मनोवैज्ञानिक तरीके से ही किया जाता है।
नहीं मिलता सही माहौल
जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, अपने व्यवहार को बांधना शुरू कर देते हैं। यहीं से पता चलता है कि आप शर्मीली हैं या फिर खुला व्यवहार करने वाली। यदि आप शर्मीली हैं तो लोगों से बात करने में असहज महसूस करती हैं और आगे बढ़कर बात करने की पहल करने से बचती हैं। बस, यहीं से शुरू होता है आपके शर्मीलेपन का सफर।
आप शर्मीली हैं तो यह आपकी आदत नहीं है, बल्कि व्यवहारिक कमजोरी है। आप इसे इस प्रकार समझ सकती हैं, जैसे किसी बच्चे का स्वभाव शर्मीला है तो वह ग्रुप में खेलते या किसी प्रोजेक्ट में साथ काम करते समय दूसरों से बातचीत न के बराबर करेगा और अपनी राय देने में असहज महसूस करेगा। असल में, जैसे-जैसे समय बीतता है, हम अपनी सहूलियत के हिसाब से ढलने लगते हैं। यहां तक कि सामाजिक परिस्थितियों में सक्रिय भागीदारी निभाने से भी बचते हैं। ऐसा अक्सर सही माहौल नहीं मिल पाने की वजह से होता है, जिस कारण हमारा आत्मविश्वास और सामाजिक कौशल पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाता।
दूसरों के बारे में न सोचें
शर्मीलापन लोगों को अलग-अलग तरीकों से जीवन के हर क्षेत्र में प्रभावित करता है। यह हमें जीवन में आगे बढ़ने से भी रोकता है, क्योंकि हम उन चीजों की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं, जो हमें सबसे सहज लगती हैं। जब कोई व्यक्ति अधिक शर्मीला होता है तो उसके लिए ऐसे क्षेत्र में कॅरिअर बनाने की संभावना कम हो जाती है, जहां सामाजिक संपर्क की जरूरत ज्यादा होती है और यही शर्मीलेपन की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। शर्मीला होने के कारण कई बार व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में नजरअंदाज भी किया जाता है। इसके विपरीत जो लोग हर बातचीत में शामिल होते हैं, उन पर लोगों का ध्यान ज्यादा जाता है, जो कि उन्हें कॅरिअर में आगे बढ़ाने में भी मदद करता है। मतलब यह कि आगे बढ़ने के लिए आपको अपने शर्मीलेपन पर काबू पाना चाहिए।
अजनबी लोगों से बात
शर्मीले लोग अक्सर सामाजिक परिस्थितियों में खुद को आत्मविश्वासी रखने की इच्छा रखते हैं और उनके लिए ऐसा करना कोई मुश्किल काम भी नहीं होता है। बस, इसके लिए उन्हें थोड़ी कोशिश करने की जरूरत है। किसी दुकान से खरीदारी करते समय, बस का इंतजार करते हुए या पार्क में सैर-सपाटा करते वक्त अजनबियों से बातचीत करके आप ऐसा कर सकती हैं। इससे आपके सामाजिक संपर्क बनेंगे और आप खुलकर अपनी बात भी कर सकेंगी। शर्मीलापन कोई लाइलाज बीमारी नहीं है, जिसे दूर न किया जा सके, लेकिन किसी व्यक्ति को बदलने की कोशिश तब तक नहीं की जा सकती, जब तक वह खुद ऐसा न करना चाहे। जरूरत इस बात की है कि आप अपनी कमजोरी को खुद पहचानें और उसका इलाज भी खुद करें।
उचित इलाज जरूरी
देखा जाए तो शर्मीलेपन का प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार पर पड़ता है। पश्चिमी देशों में शर्मीलेपन को व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं माना जाता, बल्कि समस्या के रूप में देखा जाता है। कुछ स्थितियों में शर्म महसूस करना सामान्य बात है, लेकिन अगर यह जीवन को प्रभावित करने लगे तो चिंता का सबब बन जाती है। शर्मीलापन जब सामाजिक चिंता बन जाता है तो रोजमर्रा की जिंदगी पर गहरा असर डालता है और जब आदत बन जाता है तो व्यक्ति डर, चिंता या अनिश्चितता की भावना से ग्रस्त हो जाता है। कई लोगों को अपना शर्मीलापन भारी लगता है। इसे दूर करने के लिए उन्हें आत्मविश्वास जगाना चाहिए, तभी वे इस स्थिति से मुक्त हो सकते हैं।
शर्म के भी कई प्रकार हैं
अमेरिका के शाइनेस रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक बर्नार्डो कार्डुसी शर्मीलेपन के क्षेत्र में काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता थे। उनके अध्ययन का मुख्य विषय लोगों को उनके जन्मजात शर्मीलेपन से उबरने में मदद करने के तरीकों को ढूंढना था। उन्होंने शर्मीलेपन को चिंताजनक प्रतिक्रियाओं और अत्यधिक आत्मचेतना तथा नकारात्मक आत्ममूल्यांकन की उपस्थिति के रूप में परिभाषित किया। उनका मानना था कि कुछ लोग स्वाभाविक रूप से दूसरों की तुलना में अधिक शर्मीले होते हैं।
उन्होंने शर्मीलेपन के तीन अलग-अलग घटकों की पहचान की, जिनमें पहला शारीरिक प्रभाव और दूसरा है आत्मचेतना, आत्मविश्वास की कमी, यह चिंता कि कोई देख रहा है और कहीं कुछ गलत हो जाने का डर शामिल है। वहीं तीसरा है व्यवहार में ऐसी स्थितियों से बचना, जिससे उन्हें शर्म आती हो। कार्डुसी के अनुसार, शर्मीले लोग नए हालात का सामना करने से बचते हैं, मगर अज्ञात डर का सामना करने से उन्हें आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
माना कि शर्मीला होना व्यवहार का एक हिस्सा है, लेकिन यह आपको परिभाषित नहीं करता। यह केवल एक अवगुण है, जो व्यक्ति को व्यक्तिगत होने से रोकता है। सामाजिक परिस्थितियों में आप कितनी शर्मीले हैं, इसकी चिंता करने के बजाय अपने मजबूत बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें और किसी चिंता के बिना सामान्य सामाजिक स्थितियों का प्रबंधन करना सीखें। इनके साथ आप अपने शर्मीलेपन को अपनाएं।
परवरिश का प्रभाव
सीनियर कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट डॉ. कृष्णा मिश्रा बताती हैं, बहुत ज्यादा शर्माने को आपकी आदत नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह एक तरह से आपके व्यक्तित्व की कमजोरी है। सच कहें तो वास्तव में शर्माना एक तरह की मानसिक बीमारी है, जिसका इलाज भी आपको खुद ही करना होता है। अब सवाल उठता है कि यह मानसिक बीमारी आती कहां से है तो इसका सबसे बड़ा कारण है गलत परवरिश। जब किसी बच्चे को बचपन से जरूरत से ज्यादा अनुशासन में रखा जाता है और उसे बात-बात पर टोका जाता है तो वह अपनी बात कहने में झिझकने लगता है। इसका नतीजा यह होता है कि बच्चा मन की बात किसी से कह नहीं पाता और धीरे-धीरे यह उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है।
वहीं दूसरा कारण है ‘ओवर प्रोटेक्टिवनेस’ यानी अत्यधिक सुरक्षा। आपने देखा होगा, कुछ परिजन अपने बच्चे को खुद ही खुलने का मौका नहीं देते। यहां तक कि उसे अकेले कहीं जाने नहीं देते और किसी के साथ खेलने भी नहीं देते हैं, जिसका बच्चे के विकास पर असर पड़ता है। जब वह बच्चा बड़ा होता है तो शर्माने की आदत का शिकार हो जाता है। ऐसे में आत्मविश्वास भी उसका साथ नहीं देता, फिर भले ही वह पढ़ने में कितना ही अच्छा हो। वह कभी सार्वजनिक बातचीत का हिस्सा भी नहीं बन पाता और मंच पर बोलना छोड़िए, वह मंच पर चढ़ने से भी बचने लगता है। यह बीमारी है, जिसका इलाज करने से पहले यह समझने की कोशिश की जाती है कि आखिर अड़चन कहां है! जब यह पता चल जाता है कि समस्या कहां है तो फिर काउंसलिंग से उसका इलाज करने की कोशिश की जाती है।