नई दिल्ली : धरमबीर का खेल से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। वह एक सामान्य जिंदगी जी रहे थे। हालांकि, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। आइए उनके संघर्ष की कहानी जानते हैं…
पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत के धरमबीर ने क्लब थ्रो एफ51 स्पर्धा में स्वर्ण जीतकर इतिहास रच दिया है। उन्होंने 34.92 मीटर के सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ सोना अपने नाम किया। भारत ने इस स्पर्धा का रजत पदक भी अपने नाम किया। प्रणव सूरमा ने 34.59 मीटर के सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ रजत जीता। 35 साल के धरमबीर ने इसी के साथ इतिहास रच दिया है। यह पहली बार है जब पैरालंपिक में इस स्पर्धा में भारत ने कोई पदक जीता है। हालांकि, धरमबीर के लिए यहां तक का सफर आसान नहीं रहा है। उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। एक हादसे ने धरमबीर की पूरी जिंदगी बदलकर रख दी थी। तब किसी ने सोचा नहीं था कि धरमबीर इस मुकाम तक पहुंचेंगे।
आइए उनके संघर्ष की कहानी जानते हैं…
इस हादसे का शिकार हुए
धरमबीर का खेल से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। वह एक सामान्य जिंदगी जी रहे थे। हालांकि, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन जब धरमबीर अपने गांव के ही एक कनाल में तैराकी करने पहुंचे तो वह समझ नहीं पाए कि पानी की गहराई कितनी है। जैसे ही उन्होंने पानी में छलांग लगाई, तो नीचे मौजूद पत्थरों से टकरा गए। इस हादसे में उनकी कमर में गंभीर चोट लगी। जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट है। यहां से उनकी जिंदगी एक झटके में बदल गई। चोट इतनी घातक की थी कि धरमबीर पैरालिसिस का शिकार हो गए उनके कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। उन्हें पता चला कि वह फिर कभी नहीं चल पाएंगे। धरमबीर के लिए यह सब आसान नहीं था। हालांकि, उससे निकलने के लिए उन्होंने खेल में मन लगाना शुरू किया।
पैरा खेलों में जगी दिलचस्पी
2014 में 25 साल की उम्र में उन्हें पैरा खेलों के बारे में पता चला। धरमबीर को क्लब थ्रो में दिलचस्पी जगी और उन्होंने इसकी ओर रुख किया। उन्होंने अपने साथी एथलीट और मेंटर अमित कुमार सरोहा का साथ मिला। धरमबीर को इस खेल में मजा आने लगा और उन्होंने इसे ही जिंदगी बनाने के बारे में ठान लिया। क्लब थ्रो खेल में लकड़ी के क्लब को जितना संभव हो सके उतना दूर तक फेंकना होता है। यह हैमर थ्रो के जैसा है। इस दौरान खिलाड़ी थ्रो के लिए कंधों और भुजाओं का इस्तेमाल कर सकता है।
हरियाणा सरकार से सम्मानित हो चुके
धरमबीर ने साल 2016 में रियो पैरालंपिक के लिए क्वालिफाई किया। यह उनके करियर की अच्छी शुरुआत थी। इसके बाद धरमबीर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हांगझोऊ एशियाई पैरा खेलों में उन्होंने भारत के लिए रजत पदक जीता। वहीं 2022 के अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उन्होंने क्लब थ्रो और डिस्कस थ्रो में दो रदक पदक जीते थे। उन्हें हरियाणा सरकार भीम अवॉर्ड से भी सम्मानित कर चुकी है। यह हरियाणा सरकार की ओर से दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।
धरमबीर ने भारत को दिलाया पांचवां सोना
फाइनल में धरमबीर की शुरुआत अच्छी नहीं हुई। लगातार चार थ्रो उनके अमान्य करार दिए गए। हालांकि, पांचवी बार उन्होंने शानदार वापसी करते हुए 34.92 का सर्वश्रेष्ठ थ्रो किया। इसके बाद छठे प्रयास में उन्होंने 31.59 का थ्रो किया। धरमबीर ने भारत को पेरिस पैरालंपिक में पांचवां स्वर्ण पदक दिलाया है। इससे पहले बुधवार को तीरंदाज हरविंदर सिंह ने स्वर्ण जीता पदक था। धरमबीर के स्वर्ण के साथ भारत ने टोक्यो में हासिल किए गए अपने सर्वश्रेष्ठ पांच स्वर्ण पदकों की बराबरी भी कर ली।
अंक तालिका में 13वें स्थान पर पहुंचा भारत
पेरिस पैरालंपिक में अब भारत के 24 पदक हो गए हैं। इनमें पांच स्वर्ण, नौ रजत और 10 कांस्य शामिल हैं। इसी के साथ भारत पैरालंपिक की पदक तालिका में 13वें स्थान पर पहुंच गया है। पदकों की यह संख्या अब तक की सर्वश्रेष्ठ है। टोक्यो 2020 पैरालंपिक में भारत ने 19 पदक जीते थे। भारत इस साल 25 पार के लक्ष्य के साथ उतरा है। वहीं, भारत ने एक पैरालंपिक खेलों में सबसे ज्यादा मेडल जीतने का नया रिकॉर्ड कायम किया है।