मध्यप्रदेश:– पितृपक्ष का समय हिंदू परंपराओं में अत्यंत पवित्र माना जाता है. इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करते हैं. मान्यता है कि यदि इन कर्मों के दौरान स्वधा देवी मंत्र का उच्चारण किया जाए, तो पितरों तक आहुति और तर्पण सहज रूप से पहुँच जाता है.
ब्रह्मा ने सृष्टि में दी विशेष भूमिका
पुराणों में वर्णन है कि जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, तब उन्होंने पितरों के लिए आहुति पहुँचाने का कार्य स्वधा देवी को सौंपा. तभी से स्वधा देवी पितरों की प्रतिनिधि मानी जाती हैं. यही कारण है कि श्राद्ध मंत्रों में स्वधा का उच्चारण अनिवार्य माना गया है.
स्वधा मंत्र का महत्व
श्राद्ध और तर्पण करते समय “पितृभ्यः स्वधा नमः” बोलने से पितरों तक अर्पित वस्तुएँ पहुँचती हैं. ऐसा माना जाता है कि यदि केवल तर्पण किया जाए और स्वधा देवी का स्मरण न हो, तो उसका पूरा फल पितरों तक नहीं पहुँचता. इसीलिए सभी वैदिक कर्मकांडों में पितरों को अर्पित करते समय “स्वधा” शब्द जुड़ा होता है.
आस्था और आशीर्वाद
धार्मिक विद्वानों का मानना है कि पितृपक्ष में यदि श्रद्धालु स्वधा देवी का मंत्र जप कर तर्पण करें, तो पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है. यही वजह है कि पितृपक्ष का हर कर्म स्वधा देवी की महिमा के बिना अधूरा माना जाता है.