लक्षद्वीप : लक्षद्वीप द्वीपसमूह में मूंगा चट्टानों में बड़े पैमाने पर ब्लीचिंग, यानी फ़ीका या सफ़ेद रंग, होने के पहले लक्षण दिखना शुरू हो गए हैं। खास करके उथले समुद्र और लगूनों में यह तनाव का संकेत है, जिससे बड़ी तादाद में मूंगा चट्टानों की मृत्त्यू होती है। दो हफ्ते पहले अमेरिका के मौसमी विभाग और राष्ट्रीय समुद्री एवं वायुमंडलीय प्रशासन ने उष्ण-कटिबंधित प्रदेशों में वैश्विक स्तर पे ऐसे ब्लीचिंग होने पुष्टि की है। 2023 से चल रही एल-निनो परिस्थिति के कारण दुनियाभर के समुद्री तापमान में बढ़ोतरी हुई है, जिसकी वजह से वैश्विक स्तर पर 1998 से यह चौथी ब्लीचिंग की घटना है। यह पृथ्वी पर होने वाले भगौड़े जलवायु परिवर्तन का तमाम पारिस्थितिकीयों पर असर पड़ने का बड़ा संकेत है। उथले समुद्र का औसत तापमान हमेशा के मौसमी तापमान से 1.6 डिग्री ज्यादा है, जिसकी वजह से वैज्ञानिकों को लक्षद्वीप में बड़े पैमाने पर इन मोंगा चट्टानों के तनाव में होने के संकेत दिखने शुरू हो गए हैं, परिणामतः वह फ़ीकी / सफ़ेद पड़कर उनके ऊतक वीरान हो जाते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो रही है।
मूंगा चट्टानों में ब्लीचिंग तब होता है जब इनके सहजीवी, प्रकाश-संश्लेषक सूक्ष्म शैवाल चट्टान छोड़ देते हैं। बढ़ते तापमान जैसे तनावपूर्ण परिस्थितियों की वजह से यहाँ शैवाल कोरल/मूंगा के बहार आने से इनका रंगा फ़ीका या सफ़ेद पड़ जाता है। ऐसे तनावपूर्ण परिस्थिति अगर कायम रहने पर उनके प्राथमिक अन्न-स्रोत के न होने से ये मूंगा चट्टानों की फलतः मृत्यु हो जाती है। ऐसी घटनाएं एल-निनो के साथ समबन्धित पायी गई हैं, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में औसत से ज्यादा तापमान और ग्रीष्मकालीन मॉनसून कमज़ोर होता दिखता है। ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ़ की तरह भारतीय मूंगा चट्टानों के रीफ़ भी ऐसी ही पप्वृत्ति दिखाते हैं।
लक्षद्वीप की यह मूंगा चट्टानें 1998, 2010 और 2016 की पिछली वैश्विक ब्लीचिंग की घटनाओं से बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। नेचर कंजरवेशन फाउंडेशन के वैज्ञानिकों ने पहली ब्लीचिंग से अब तक इन चट्टानों में 25 % की घटाई दर्ज की है। उन्होंने यह भी दर्शाया है कि पर्याप्त समय मिलने पर यह चट्टानें पहली जैसी हो सकती हैं, मगर यह परिणाम दिखने में 6-7 सालों तक अबाधित रहना महत्त्वपूर्ण है। लक्षद्वीप में इनकी जाँच करने वाले वैज्ञानिक मयूख दे समझाते हैं ” मूंगा चट्टानें की क्षति वर्षावनों से पेड़ खोने जैसे है। ” राधिका नायर, एक और वैज्ञानिक, आगे बताती हैं ” ऐसे प्राकृतिक आवास-नाश के परिणाम इनपर निर्भर वाले छोटे प्राणी-मछलियों पर दिखाई देते हैं। कईं बार मूंगा चट्टानें भले वापस स्वस्थ हो जाती हैं, मगर ये प्राणी नहीं हो पाते।”
लक्षद्वीप के लिए ऐसी पुनरावृत्त ब्लीचिंग की घटनाओं के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस द्वीपसमूह में साधारण 70000 लोगों की घनी आबादी वाली, निचले क्षेत्रों में बस्तियाँ हैं। यहाँ के स्वस्थ मूंगा चट्टानें नियमितरूप से आने वाले तूफ़ान, समुद्रीयजल -स्तर की बढ़त और अन्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से इन बस्तियों की रक्षा करती हैं।
“अगर ऐसे ही तापमान बढ़ता रहा तो लक्षद्वीप की मूंगा चट्टानों को निश्चित हानि होगी, ” मूंगा-स्वस्थ्य की जाँच करने वाले वैज्ञानिक वेन्ज़ेल पिंटो कहते हैं। “मुझे आशा है कि मॉनसून बारिश आने पर समुद्री-सतह का तापमान कम होकर यह तनावपूर्ण परिस्थिति चली जाएगी। पर अभी बारिश आने में कुछ हफ़्ते हैं , और इन मूंगा चट्टानों की हालत निराशाजनक है। एक बात स्पष्ट है कि इस घटना के प्रभाव की अनुभूति आने वाले कईं सालों तक रहेगी।”