रायपुर। राजधानी का चर्चित ओम हॉस्पिटल एक बार फिर सवालों के घेरे में है। आर्थो इलाज के नाम पर हुई एक मां की दर्दनाक मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों और अस्पताल प्रबंधन की सीधी लापरवाही ने उनकी मां की जान ले ली। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि सनसनीखेज़ आरोपों के बावजूद आज तक अस्पताल पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
विवादों से भरा ओम हॉस्पिटल का रिकॉर्ड
यह कोई पहला मामला नहीं है। ओम हॉस्पिटल पर पहले भी गंभीर आरोप लगते रहे हैं, लेकिन हर बार मामला दबा दिया गया।
विवादों की टाइमलाइन:
2021 – बिलिंग घोटाला: सामान्य इलाज के नाम पर लाखों का बिल थमाने का आरोप।
2022 – गलत ऑपरेशन: मरीज का ऑपरेशन गलत हिस्से में करने की शिकायत, जांच अधूरी छोड़ दी गई।
2023 – दवा में लापरवाही: मरीज को गलत दवा दी गई, हालत बिगड़ी लेकिन प्रबंधन बच निकला।
2024 – इलाज के दौरान मौत: महिला मरीज की मौत, परिजनों ने डॉक्टरों पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया।
2025 (वर्तमान मामला) – आर्थो इलाज के नाम पर मां की मौत, अब तक कार्रवाई नदारद।
स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी पर उठ रहे सवाल
सबसे बड़ा सवाल स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के विभाग पर खड़ा हो रहा है। परिजनों और आम नागरिकों का आरोप है कि विभागीय अधिकारी न केवल गायब हैं, बल्कि मामले को दबाने की कोशिश भी कर रहे हैं। जनता पूछ रही है—“आखिर किस दबाव में विभाग चुप है?”
परिजनों का दर्द
पीड़ित परिवार की चीखें आज भी गूंज रही हैं।
“अगर हमारी मां को सही इलाज मिला होता तो वो आज जिंदा होतीं। अधिकारियों से बार-बार गुहार लगाई, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिला। हमारी मां की मौत का जिम्मेदार कौन है?” – पीड़ित परिवार।
जनता का गुस्सा
क्या रायपुर में निजी अस्पतालों को लापरवाही की खुली छूट है?
क्यों हर बार गंभीर मामले दबा दिए जाते हैं?
कब तक मरीजों की जान से खिलवाड़ होता रहेगा?
ओम हॉस्पिटल पर लगे ताज़ा आरोप सिर्फ एक मां की मौत तक सीमित नहीं हैं। यह पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल खड़े कर रहे हैं। लगातार विवादों और मौतों के बावजूद कार्रवाई न होना यह साबित करता है कि अस्पताल को संरक्षण प्राप्त है। जनता अब यह जानना चाहती है—क्या इंसाफ सिर्फ फाइलों और कागजों पर होगा या दोषियों को सज़ा भी मिलेगी?