नई दिल्ली : हृदय रोग वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ती गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, कम उम्र के लोगों में भी इसका खतरा देखा जा रहा है। हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याओं के कारण हृदय रोग और इससे संबंधित जटिलताओं का जोखिम बढ़ जाता है। इसे नियंत्रित रखना हृदय रोगों के खतरे से बचाव के लिए जरूरी माना जाता है। क्या कोई ऐसा तरीका है जिसकी मदद से ये जाना जा सके कि भविष्य में आपको हृदय रोगों या हार्ट अटैक का खतरा तो नहीं है?
इस बारे में स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, कुछ प्रकार के टेस्ट 5-7 साल पहले ही अंदाजा लगाने में मददगार हो सकते हैं कि भविष्य में आपको हार्ट अटैक का जोखिम तो नहीं है? इसी तरह से खून की जांच की मदद से करीब सात साल पहले ये जानने में मदद मिल सकती है कि आपको पार्किंसंस रोग का खतरा तो नहीं है?
एसजीपीटी टेस्ट से हृदय रोगों का चल सकता है पता
इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज के डायरेक्टर डॉ शिव कुमार सरीन ने एक साक्षात्कार में बताया कि सभी लोगों को एक बिल्कुल सस्ता और कारगर टेस्ट लिवर का टेस्ट जरूर कराना चाहिए, इससे हृदय रोगों के संभावित खतरे का पता लगाने में भी मदद मिल सकती है। इस टेस्ट को एसजीपीटी टेस्ट के नाम से जाना जाता है। जिन लोगों का एसजीपीटी रेट सामान्य से अधिक बना रहता है, उनमें अगले 7-10 साल में हृदय रोगों का खतरा करीब सात गुना तक अधिक हो सकता है।
एसजीपीटी टेस्ट के क्या फायदे
एसजीपीटी टेस्ट की मदद से शरीर में इंफ्लामेशन का पता लगाने में मदद मिलती है। लंबे समय तक बनी रहने वाली इंफ्लामेशन की समस्या हृदय रोगों का खतरा बढ़ा देती है। उदाहरण के लिए अगर 26 साल की उम्र में किसी व्यक्ति का एसजीपीटी रेट 80 है तो उसमें अगले 10 साल में हृदय रोगों के शिकार होने का खतरा अधिक हो सकता है।
डॉ सरीन कहते हैं, सभी लोगों को शादी से पहले ये टेस्ट जरूर करा लेना चाहिए जिससे भविष्य में जोखिमों से बचाव करने में मदद मिल सके।
पार्किंसंस रोग का निदान
इसी तरह एक अन्य अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि करीब 5-7 साल पहले किस तरह से पार्किंसंस रोग के बारे में जाना जा सकता है?
नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन की रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने बताया कि खास प्रकार के खून की जांच की मदद से पार्किंसंस रोग के निदान में मदद मिल सकती है। जर्मनी के यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर गोटिंगेन में न्यूरोलॉजी विभाग के अध्ययन लेखक माइकल बार्टल कहते हैं, यह काफी आश्चर्यजनक अध्ययन है क्योंकि बायोमार्करों का उपयोग करके पार्किंसंस रोग का निदान वास्तव में काफी चुनौतीपूर्ण है, विशेष रूप से अन्य रोगों की तुलना में।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
प्रोफेसर माइकल बार्टल कहते हैं, हम प्रयोगशाला में सेरेब्रल स्पाइनल फ्लूइड का उपयोग करके पार्किंसंस बायोमार्कर की खोज करने पर काम कर रहे हैं, लेकिन हमने पाया कि यह काफी चुनौतीपूर्ण है। शोधकर्ताओं ने कहा कि हम सीरम से कुछ बायोमार्कर खोज रहे हैं। बायोमार्करों की मदद से भविष्य में पार्किंसंस जैसे रोग के खतरे को पहचानने में मदद मिल सकती है।
समय पर लक्षणों का पता चल जाए और इसका इलाज हो जाए तो रोग की गंभीरता कम करने में मदद मिल सकती है।