आज, 7 नवंबर 2025 को, आरबीआई के गवर्नर Sanjay Malhotra ने यह घोषणा की है कि भारतीय बैंक उद्योग पिछले दशक की तुलना में बहुत अधिक परिपक्व और स्थिर स्थिति में पहुँच गया है। उन्होंने कहा कि बैंक अब सिर्फ जमा-लेनदेन करने वाले संस्थान नहीं रह गए हैं, बल्कि वे बड़े स्तर पर निवेश के अवसरों को समायोजित कर लेने में सक्षम हो गए हैं। उनके मुताबिक, निम्नलिखित बिंदुओं पर बैंकिंग व्यवस्था में उल्लेखनीय बदलाव आया है:बैंक पूँजी स्थिति (capital adequacy) बेहतर हुई है, जिससे उन्हें नियामक-दबाव का सामना कम करना पड़ रहा है और जोखिम को संभालने में सक्षम बनना आरंभ हुआ है। समस्या वाले ऋण (Non-Performing Assets / NPAs) का स्तर नियंत्रित हुआ है, जिससे बैंकिंग सिस्टम की लीक-हैनी कमजोर हो गई है। अब बैंक अधिक सक्रिय रूप से पूँजी-बाज़ार से जुड़े अवसरों जैसे अधिग्रहण (acquisitions) और विदेशी वाणिज्यिक उधार (ECB) में भाग ले सकते हैं — क्योंकि सिस्टम के अंदर महाराष्ट्र-क्षमता (operational capacity) बढ़ चुकी है। विदेशी निवेश (फॉरेन डिपॉज़िट्स) और विदेश-उधार के प्रवाह (capital inflows) आने वाले समय में भी मजबूत बने रहने की ओर इशारा किया गया है। गवर्नर मल्होत्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि यह स्थिति आराम करने का संकेत नहीं है। उन्होंने कहा कि भू-गोलो आर्थिक (geoeconomic) चुनौतियाँ, वैश्विक वित्तीय अस्थिरता तथा तकनीकी बदलावों के चलते बैंकिंग जगत को सतर्क रहना होगा। उन्होंने जोर दिया कि “आज बैंकें पहले से ज़्यादा सक्षम हैं, लेकिन भविष्य में बढ़ने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी सतर्कता व रणनीति उतनी ही ज़रूरी होगी।”






