नई दिल्ली:– कोलेस्ट्रॉल, जिसे हम अक्सर सिर्फ बीमारियों से जोड़ते हैं, वह आने वाले समय में इलेक्ट्रॉनिक्स को चलाने में भी मदद कर सकता है. हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने इस दिशा में एक अनोखी खोज की है, जिसमें कोलेस्ट्रॉल से बने नैनोमैटीरियल्स का इस्तेमाल भविष्य की इलेक्ट्रॉनिक तकनीक यानी स्पिन्ट्रॉनिक्स में किया जा सकता है. यह खोज न सिर्फ एनर्जी बचाने में मदद करेगी, बल्कि ग्रीन टेक्नोलॉजी की दिशा में भी बड़ा कदम है.
यह खोज बताती है कि कोलेस्ट्रॉल इलेक्ट्रॉन के स्पिन को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है. यह शोध हाल ही में जर्नल में प्रकाशित हुआ है, पंजाब के मोहाली स्थित में किया गया और इसका नेतृत्व डॉ. अमित कुमार मंडल और उनकी टीम ने किया. वैज्ञानिकों ने कोलेस्ट्रॉल और मेटल आयनों को मिलाकर ऐसे नैनोमैटीरियल्स तैयार किए हैं, जो इलेक्ट्रॉन के स्पिन को फिल्टर और कंट्रोल कर सकते हैं. यह भविष्य की स्पिन्ट्रॉनिक डिवाइसों के लिए अहम साधन साबित हो सकता है.
कोलेस्ट्रॉल आधारित स्पिन्ट्रॉनिक्स: क्यों जरूरी है और कैसे काम करेगा:
आज की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसें जैसे कंप्यूटर, मोबाइल, चिप्स बहुत ज्यादा बिजली खाती हैं और गर्म भी हो जाती हैं. इससे एनर्जी की खपत बढ़ती है और पर्यावरण पर असर पड़ता है. स्पिन्ट्रॉनिक्स तकनीक इलेक्ट्रॉन के स्पिन का इस्तेमाल करके कम बिजली खर्च वाली और तेज डिवाइस बनाने में मदद करेगी. यही वजह है कि वैज्ञानिक कोलेस्ट्रॉल जैसी प्राकृतिक चीजों से नई दिशा खोज रहे हैं.
कोलेस्ट्रॉल की खासियत है कि इसमें chirality यानी एक तरह की हैंडेडनेस मौजूद होती है. यह गुण इलेक्ट्रॉन के स्पिन को बहुत बारीकी से कंट्रोल कर सकता है. जब वैज्ञानिकों ने कोलेस्ट्रॉल को अलग-अलग मेटल आयनों के साथ मिलाया, तो उन्होंने पाया कि नैनोमैटीरियल्स इलेक्ट्रॉन स्पिन को फिल्टर और दिशा बदलने में सक्षम हैं. इस तरह इलेक्ट्रॉन का स्पिन आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है.
स्पिन्ट्रॉनिक्स के फायदे और भविष्य के उपयोग
एनर्जी बचाने वाली नई मेमोरी चिप्स बन सकेंगी.
ग्रीन टेक्नोलॉजी विकसित होगी.
बायोइलेक्ट्रॉनिक और क्वांटम डिवाइसों का रास्ता खुलेगा.
डिवाइस तेज़ और ज्यादा शक्तिशाली बनेंगे.
डेटा लंबे समय तक सुरक्षित रहेगा बिजली चले जाने पर भी.
कम गर्मी पैदा होगी और एनर्जी की खपत कम होगी.






