भोपाल: मध्यप्रदेश की राजनीति में 40 साल से अधिक के राजनीतिक अनुभव के साथ कमलनाथ इस बार फिर कांग्रेस का नेतृत्व करेंगे। 76 वर्षीय कांग्रेस नेता कमलनाथ इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में पांच साल में दूसरी बार बीजेपी के सामने होंगे। वह इस चुनाव में बीजेपी के खिलाफ तीखी राजनीतिक लड़ाई में पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में 2018 में बीजेपी की 109 सीटों के मुकाबले कांग्रेस ने 114 सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार स्थिति अलग है क्योंकि भगवा पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने के लिए एक रणनीति अपनाई है। इसके तहत मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दरकिनार कर दिया है। अब कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस का बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सीधा मुकाबला होगा।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी को मुख्य चेहरे के रूप में पेश करने को अलग तरह से देखा जा सकता है। राज्य इकाई के भीतर बड़े पैमाने पर चल रही गुटबाजी को नियंत्रित करने की यह कोशिश है। इसके साथ ही एकता लाने के प्रयास के रूप में इसे देखा जा रहा है। नेतृत्व में परिवर्तन लाने के लिए या मोदी और लंबे समय से मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे चौहान के बीच एक कड़वी और छिपी हुई राजनीतिक लड़ाई के रूप में।
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक इसे कुछ हद तक कांग्रेस को ‘असहज’ करने की रणनीति का हिस्सा भी मान रहे हैं। शासन में कई घोटालों, भ्रष्टाचार, महिलाओं और कमजोर वर्ग के लोगों के खिलाफ बढ़ते अपराध के कारण, मुख्यमंत्री चौहान को निस्संदेह नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए, बीजेपी के चुनाव रणनीतिकारों ने अंतिम समय में यह मास्टर स्ट्रोक खेलने की कोशिश की।
हालांकि, कमलनाथ ने अपने अनुभवी सहयोगी और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह के साथ, लोगों की भावनाओं को जीतने के लिए सीएम चौहान के 18 साल के शासन को मुख्य रूप से निशाना बनाते हुये चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
लोकल मुद्दों पर फोकस करेगी कांग्रेस
दिल्ली में रहने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि भले ही भाजपा ने एमपी के विधानसभा चुनावों के लिए पीएम मोदी का चेहरा पेश किया है, लेकिन कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस उनके साथ सीधे मुकाबले से परहेज करेगी। इसकी बजाए वह आखिरी क्षण तक सीएम चौहान पर निशाना साधती रहेगी, क्योंकि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व स्थानीय मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगा।
महत्वपूर्ण बात यह है कि सांप्रदायिक कार्ड के साथ ध्रुवीकरण की बीजेपी की मुख्य रणनीति का मुकाबला करने के लिए, अनुभवी राजनेता कमलनाथ ने खुद को ‘भगवान हनुमान’ के भक्त के रूप में पेश किया है और नरम हिंदुत्व अपनाया है। यहां तक कि कांग्रेस के एक वर्ग ने इस दृष्टिकोण पर सवाल उठाए, लेकिन कमलनाथ अपने फैसले पर कायम रहे।
तीन चुनावों में लागातार हार
गांधी परिवार के बेहद करीबी कमलनाथ 2018 में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सक्रिय रूप से मध्य प्रदेश की राजनीति में शामिल हो गए थे। उन्हें राज्य की कांग्रेस इकाई के भीतर चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, जो लगातार तीन विधानसभा चुनावों 2003, 2008 और 2013 में हार के कारण बिखर गई थी।
मध्य प्रदेश की राजनीति के लिए गुटबाजी कोई नई बात नहीं है। पार्टी के कैडर का आत्मविश्वास बढ़ाना एक और चुनौती थी। हालांकि, पांच वर्षों की अवधि में, उन्होंने संरचनात्मक परिवर्तन किए और 2018 में चुनाव भी जीते। हालांकि, गुटबाजी दूर नहीं हुई और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व वाला एक गुट बीजेपी में चला गया और कमलनाथ की सरकार गिर गई।
लेकिन, पिछले साल हुए नगर निगम चुनावों ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को फिर से उत्साहित कर दिया। दो दशक के बाद ग्वालियर, मुरैना और रीवा सहित 16 मेयर सीटों में से पांच पर पार्टी ने जीत हासिल की। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कमलनाथ को 10 साल तक मुख्यमंत्री रह चुके और जमीन पर मजबूत आधार रखने वाले दिग्विजय सिंह से पूरा सहयोग मिला है।
अपने सार्वजनिक संबोधनों या प्रेस से बातचीत के दौरान, कमलनाथ लंबे भाषण देने की बजाय अपना भाषण ‘उपयुक्त’ और ‘विशिष्ट’ रखते हैं। अपने लक्ष्य पर फोकस करने के नाते वह तीन मुद्दों का उल्लेख करना नहीं भूलेंगे – भ्रष्टाचार, महिलाओं और कमजोर वर्गों के खिलाफ अत्याचार, राज्य की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और युवाओं के लिए रोजगार।
एक सफल व्यवसायी होने के नाते, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का नेतृत्व कर चुके कमलनाथ के व्यापारिक घरानों के साथ मजबूत संबंध हैं। उन्होंने आर्थिक गतिविधियों पर जोर दिया। वह अक्सर राज्य के आर्थिक मुद्दों को लेकर सीएम चौहान पर निशाना साधते हुए कहते थे कि निवेश की मांग नहीं की जा सकती, यह आकर्षक नीतियों और विश्वास पैदा करने से आता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उद्योगों को चलाने का अनुभव और बड़े व्यापारिक घरानों के साथ संबंध होने के कारण मौजूदा मुख्यमंत्री चौहान की तुलना में कमलनाथ का पलड़ा भारी है। कमलनाथ शहरी वर्ग के लोगों के नेता हैं, जबकि, चौहान ग्रामीण वर्ग की आबादी से करीब से जुड़े हुए हैं।
एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि शिवराज सिंह चौहान के पास एक अलग विशेषज्ञता है। वह किसानों की समस्याओं, गरीबों के जीवन की बुनियादी जरूरतों को जानते हैं, लेकिन वह अर्थव्यवस्था और औद्योगीकरण पर पूरी तरह से नौकरशाहों पर निर्भर हैं। यही कारण है कि वह युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने में विफल रहे। जबकि कमलनाथ खुद एक नीति निर्माता हैं। जब वह रोजगार सृजन की बात करते हैं और अगर उन्हें पांच साल के लिए मप्र के शासन पर नियंत्रण मिलता है, तो उन्हें अपने सभी अनुभव का उपयोग करना होगा। अन्यथा उन्हें उन्हीं सवालों का सामना करना पड़ेगा, जिनका सामना आज शिवराज सिंह चौहान को करना पड़ रहा है।