रायपुर:- फिल्म शोले का एक डायलाग खूब लोकप्रिय हुआ था- हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं।इन दिनों कोरबा जिले में हालात कुछ ऐसे ही नजर आ रहे हैं।कलेक्टर का रवैया बिलकुल अंग्रेजों के जमाने के अफसरों जैसा है।अव्वल तो वे किसी की बात सुनना नहीं चाहते हैं? बता दे कि अंग्रेजों के जमाने के कानून से चलती आ रही व्यवस्था देश की मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था में आईएएस को सर्वोच्च सेवा माना जाता है।विदेश सेवा और पुलिस सेवा इसके बाद आते हैं।
1858 में अंग्रेजों द्वारा विकसित की गई दमनकारी व्यवस्था में इंडियन सिविल सर्विस की स्थापना की गई थी। यह व्यवस्था 1857 की क्रांति से उपजी थी।1947 में देश के आजाद होने के बाद इसे आईएएस नाम दे दिया गया। लेकिन,अंग्रेजों के बनाए कानूनों में कोई बड़े बदलाव नहीं किए गए,कलेक्टर जिले का मुखिया होता है और वह जिला दंडाधिकारी भी कहलता है। दंडाधिकारी के तौर पर उसे अर्ध न्यायिक स्वरूप की शक्तियां भी विभिन्न कानूनों में दी गईं हैं। शक्तियों की अवधारणा में अंग्रेजों के कानून हैं।कुछ साल पहले तक देश में पुलिस भी सीधे कलेक्टर अर्थात जिला दंडाधिकारी के अधीन ही होती थी,लेकिन,सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद पुलिस अधीक्षक की गोपनीय चरित्रावली लिखने के अधिकार कलेक्टर से छीन लिए गए,उसके बाद से ही पुलिस अफसरों ने कलेक्टर के निर्देशन में सीधे काम करना बंद कर दिया यद्यपि दंडाधिकारी शक्ति अभी मजिस्ट्रेट के नाम प्रशासनिक अधिकारियों के पास हैं।इसमें बदलाव का साहस सरकार नहीं जुटा पा रही है। विधायिका बदलाव करना भी नहीं चाहती हैं जिसकी मुख्य बजह हैं कि अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए अंग्रेजों का बनाया कानून उनकी काफी मदद करता है।बताना लाजमी होगा कि इंडियन सिविल सर्विस एक्ट 1860 में ही इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया गया था ये जो कलेक्टर हैं वो इसी कानून की देन हैं।भारत के सिविल सर्वेंट जो हैं उन्हें संवैधानिक प्रोटेक्शन है,क्योंकि जब ये कानून बना था उस समय सारे आईसएएस अधिकारी अंग्रेज थे और उन्होंने अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाया था,ऐसा विश्व के किसी देश में नहीं है,और वो कानून चुकी आज भी लागू है इसलिए भारत के आईएएस अधिकारी सबसे निरंकुश हैं।आपने सीवीसी थोमस का मामला देखा होगा इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता और इन अधिकारियों का हर तीन साल पर तबादला हो जाता था क्योंकि अंग्रेजों को ये डर था कि अगर ज्यादा दिन तक कोई अधिकारी एक जगह रह गया तो उसके स्थानीय लोगों से अच्छे सम्बन्ध हो जायेंगे और वो ड्यूटी उतनी तत्परता से नहीं कर पायेगा या उसके काम काज में ढीलापन आ जायेगा,और वो ट्रान्सफर और पोस्टिंग का सिलसिला आज भी वैसे ही जारी है और हमारे यहाँ के कलक्टरों की जिंदगी इसी में कट जाती है।
और ये जो कलेक्टर होते थे उनका काम था रेवेन्यु टेक्स लगान और लुट के माल को संग्रहण करना इसीलिए ये कलेक्टर कहलाये और जो कमिश्नर होते थे वो कमीशन पर काम करते थे उनकी कोई तनख्वाह तय नहीं होती थी और वो जो लुटते थे उसी के आधार पर उनका कमीशन होता था।ये मजाक की बात या बनावटी कहानी नहीं है ये सच्चाई है इसलिए ये दोनों पदाधिकारी जम के लूटपाट और अत्याचार मचाते थे उस समय,अब इस कानून का नाम इंडियन सिविल सर्विस एक्ट से बदल कर इंडियन सिविल प्रशासनिक(Administrative) एक्ट हो गया है।आजादी के 75 वर्षो बाद से अब तक बस इतना ही बदलाव हुआ है।जिसका फायदा आईएएस (कलेक्टर)खूब उठाते हैं कुछ तो सत्ताधारीयों के इतने नजदीक होते हैं कि वो आपने आपको मुख्यमंत्री या लोगो के भाग्यविधाता समझ बैठते हैं जैसा इन दिनों कोरबा जिला में देखने को मिल रहा हैं।
कलेक्टर पर डीएफओ को धमकाने का आरोप, कहा- ‘बोरिया बिस्तर समेट लो’, शिकायत मंत्री तक पहुंची
छत्तीसगढ़ के ऊर्जा नगरी कहे जाने कोरबा में पदस्थ जिला कलेक्टर(IAS) और जिला वनमण्डलाधिकारी(IFS अफसर के बीच में इन दिनों विवाद छिड़ गया है।विवाद की वजह लोक कल्याण में होने वाले काम और उसमें आ रहे सरकारी दांव- पेंच है।दरअसल,जिला कलेक्टर रानू साहू ने एकलव्य आवासीय विद्यालय और खेल मैदान के लिए कटघोरा वन मंडल से छह हेक्टेयर जमीन आवंटित करने को लेकर जिला वनमण्डलाधिकारी शमा फारूकी को कहा था,लेकिन शमा फारूकी ने सरकारी नियमों का हवाला देते हुए जमीन आवंटित करने से मना कर दिया,बताया जा रहा है कि इस मामले में कोरबा कलेक्टर और डीएफओ के बीच हुई तू तू मैं-मैं हो गई और मामला गर्मा गया है।बता दे कि एकलव्य आवासीय विद्यालय और खेल मैदान के लिए कटघोरा वन मंडल से छह हेक्टेयर जमीन आवंटित करने के मामले में कोरबा कलेक्टर और डीएफओ के बीच हुई तू तू मैं-मैं का मामला गर्मा गया है।डीएफओ ने मंत्री मो.अकबर से मिलकर इस पूरे मामले की शिकायत की है।डीएफओ ने अपनी शिकायत में कहा है कि कलेक्टर रानू साहू ने जमीन आवंटित नहीं किए जाने पर बोरिया बिस्तर समेटने तक की धमकी दी है।चर्चा है कि यह मामला आईएफएस एसोसिएशन तक जा सकता है।कहा जा रहा है ऐसी घटना की पुनरावृत्ति ना हो यह सुनिश्चित करने की मांग भी एसोसिएशन की ओर से की जा सकती है।दरअसल बीते 17 दिसंबर को कलेक्टर कार्यालय की ओर से कटघोरा वन मंडल की डीएफओ शमा फारूकी को पत्र लिखकर एकलव्य आवासीय विद्यालय,बालक छात्रावास, कन्या छात्रावास,जल आपूर्ति हेतु पाइप लाइन लगाने,खेल मैदान और आवासीय परिसर के लिए कुल छह हेक्टेयर जमीन आवंटित किए जाने की मांग की गई थी।डीएफओ ने नियमों का हवाला देते हुए जमीन देने से मना कर दिया,जिसके बाद वीडियो कांफ्रेंसिंग में कलेक्टर और डीएफओ के बीच इस मसले पर बातचीत हुई।बताते हैं कि ऐसे ही एक मामले में सरगुजा में आवंटित किए गए जमीन का उदाहरण देकर अलग-अलग टुकड़ों में जमीन दिए जाने की बात कहीं गई, जिस पर डीएफओ ने पूर्व में जारी नियमों का हवाला देते हुए जमीन आवंटित किए जाने की अड़चनों का जिक्र किया। बात यही बिगड़ी और कलेक्टर-डीएफओ के बीच तनातनी के हालात बन गए।बताया जा रहा है कि कलेक्टर ने डीएफओ से यह भी कहा कि वह एसडीओ को चार्ज देकर 15 दिनों की छुट्टी पर चली जाए।एसडीओ के जरिए यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी।इस पर डीएफओ ने कहा कि,एसडीओ की रिपोर्ट के आधार पर जमीन नहीं दिए जाने का निर्णय लिया गया है।
वन मंत्री से की गई शिकायत में यह बात सामने आई है कि कलेक्टर ने डीएफओ से यह तक कह दिया कि इस मामले में उनकी बात सीएम हाउस तक हो चुकी है।बावजूद इसके डीएफओ नियमों के हवाले से टस से मस नहीं हुई।आरोप है कि कलेक्टर ने डीएफओ को बोरिया बिस्तर समेटने तक की चेतावनी दे दी।इस चेतावनी के बाद डीएफओ ने वन मंत्री से मुलाकात कर पूरी घटना का ब्यौरा दिया है।इस बीच वन महकमे की ओर से लैंड मैनेजमेंट संभाल रहे अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुनील मिश्रा ने नया निर्देश जारी कर स्पष्ट किया है कि एक हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि का आवंटन ना किया जाए।इधर इस मामले में आईएफएस एसोसिएशन के अध्यक्ष अरूण पांडेय ने लल्लूराम डाट काम से बातचीत में कहा कि,फिलहाल औपचारिक तौर पर इस घटना की जानकारी एसोसिएशन से साझा नहीं की गई है।एसोसिएशन को शिकायत मिलने पर बातचीत की जाएगी।
विधायक ने भी जताई आपत्ति
विधायक मोहित केरकेट्टा ने भी इस मामले में कहा हैं कि अगर वनमण्डलाधिकारी,एकलव्य विद्यालय के लिए जमीन आंवटित नहीं करतर है तो इसकी शिकायत वे सीएम से करेंगे,मोहित केरकेट्टा का कहना है कि जब बात बच्चों के भविष्य को लेकर हैं,तो आखिर वनमण्डलाधिकारी को आपत्ति क्यों है..?
इस मामले में राजनीति आने के बाद लग रहा है कि कुछ दिनों में जमीन आवंटित हो जाएगी।बहरहाल, प्रदेश में IAS अफसर और IFS अफसर के बीच विवाद की चर्चा प्रदेश में हो रही है।
आईएएस अफ़सर बीते 75 साल से प्रशासन तंत्र की रीढ़ क्यों?
ब्रिटिश हुकूमत ने भारत जैसे विशाल देश पर अपने उदार और सख्त आईसीएस यानी भारतीय लोक सेवकों के बलबूते सदियों तक राज किया, फिलिप मैसन ने वूडरफ नामक उपनाम से एक किताब लिखी है जिसका नाम द मैन हू रूल्ड इंडिया है।
भारत की आजादी के एक साल बाद साल 1948 में गठित होने वाली भारतीय प्रशासनिक सेवा इसी सेवा की उत्तराधिकारी है।इतिहास इस बात का साक्षी होगा कि आईएएस सर्विसेज को भारत का स्टील फ्रेम कहकर सही उपनाम दिया गया।इस सेवा के अफसरों ने आजादी को बरकरार रखते हुए बहुभाषी, बहुजातीय और जातपात से प्रभावित देश के सबसे कमज़ोर वक़्त में एक अहम रोल निभाया।
भारतीय अफ़सरशाही की असली तस्वीर
75 वर्षो से नीतिगत सलाहकार साल 1947 में भारत और इसके क्षेत्र के नियंत्रण का अधिकार लंदन में बैठी सरकार से दिल्ली में बैठी सरकार को ट्रांसफर हो गया।
इसके बाद बीते कई दशकों से स्थानीय नेताओं की शक्ति में इज़ाफे के साथ सांसद और विधायक प्रमुख हो गए हैं।और भारत में सत्ता के केंद्र बन गया।
बीते 75 साल से जारी विकास की प्रक्रिया में आईएएस अधिकारी नीतिगत सलाहकार से लेकर ज़मीन पर फ़ैसलों के अमलीकरण की भूमिका को निभा रहे हैं।
इसीलिए ज़िला स्तर पर आज भी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (कलेक्टर) राज्य सरकार का मुख्य नुमाइंदा होता है।डीएम ज़िले के सभी विभागों में समन्वयक और राज्य सरकार की परियोजनाओं की देखरेख की ज़िम्मेदारी संभालता है।इसी वजह से नई उम्र में सर्विस ज्वॉइन करने वाले आईएएस अधिकारियों को ब्रिटिश सरकार के आईसीएस अधिकारियों जैसा सम्मान प्राप्त है।
राजनेता और आईएएस,एक सिक्के के दो पहलू
राज्यों के सत्ता केंद्रों में सभी विभागों के सचिव इसी सर्विस से आते हैं।इसी तरह सभी मंत्रालयों और भारत सरकार के विभाग भी इन्हीं अधिकारियों द्वारा चलाए जाते हैं जो सीधे राजनीतिक रूप से चयनित मंत्री के साथ काम करते हैं।सचिवालय के अलावा आईएएस अधिकारी केंद्र से लेकर राज्यों के स्तर पर तमाम संगठनों का नेतृत्व करते हैं।ऐसे में चयनित राजनेता और आईएएस अधिकारी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।हालांकि, सचिवालयों में पद के हिसाब से चयनित मंत्री नीति निर्माता हैं और प्रशासक इन नीतियों को अमल में लाता है।लेकिन अगर हक़ीक़त देखें तो वरिष्ठ प्रशासक ही अक्सर नीतियों का निर्माण करते हैं जिन्हें राजनेताओं के समर्थन के बाद औपचारिक वैधानिक मिलती है।
आईएएस और भ्रष्टाचार
एक रेवेन्यू सेक्रेटरी से जब पूछा गया कि उसके मंत्री से कैसे संबंध हैं तो उसने कहा कि मंत्री जी अहम मलाईदार पोस्टिंग और तहसीलदारों की पोस्टिंग देखते हैं और मैं नीतियों से जुड़ा काम देखता हूं।आईएएस कैडर से जुड़ा ये मामला 90 के दौर में इस सेवा की दिशा और दशा के बारे में बताएगा।उत्तर प्रदेश के आईएएस अधिकारियों की वार्षिक बैठक में 400 के करीब अधिकारियों को गुप्त रूप से प्रदेश के सबसे भ्रष्ट अधिकारी का नाम बताने को कहा गया।
क्या दुनिया में किसी भी पेशेवर समूह में अपने बीच सबसे ज्यादा भ्रष्ट व्यक्ति की पहचान की जाएगी? ये उनके ख़ुद पर यक़ीन रखने का संकेत देता है।
इसमें चार लोगों का नाम सामने आया था जिनमें से तीन लोग राज्य के प्रमुख सचिव बने।चौथे व्यक्ति की असमय मौत हो गई थी इन तीनों व्यक्तियों को वरिष्ठता के क्रम में पीछे रहने के बावजूद गद्दी दी गई।
ये बात बताती है कि राजनेता इस समय तक प्रभावी हो चुका था, मुख्यमंत्री को एक ईमानदार चीफ सेक्रेटरी की जगह हां में हां मिलाने वाला अधिकारी चाहिए था।दूसरे शब्दों में कहें तो 90 के दशक से इस सर्विस का राजनीतिकरण शुरू गया और तबसे ये अब तक बहुत तेज़ी से बढ़ा है।हालांकि आज़ादी के पहले दशक में ही कुछ भ्रष्ट अधिकारियों को किसी भी कैडर में पहचाना जा सकता था, ये ख़तरा इस शताब्दी की शुरुआत में तेज़ी से बढ़ा है।
अफ़सोस कि सेवा की शुचिता को जिस रुप में होनी चाहिए वैसी अब नहीं रही है।जबकि आईएएस अधिकारियों का एक छोटा हिस्सा ही अब भी आर्थिक तौर पर भ्रष्ट देखा जा सकता है, लेकिन ये सच्चाई है कि आईएएस की एक बड़ी संख्या बौद्धिक तौर पर भ्रष्ट है।ये वो तबका है जो अपनी स्वतंत्र और नि:स्वार्थ सलाह नहीं देते जिसकी उनसे उम्मीद की जाती है और जानबूझकर मंत्रियों की इच्छा के मुताबिक काम करते हैं, यहां तक कि कुछ मामलों में तो राजनेताओं की व्यक्तिगत ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सह-षड्यंत्रकारी बनकर सहयोग करते हैं।
प्रशासनिक तंत्र की रीढ़
निश्चित तौर पर सर्विस की अखंडता पर कुछ हद तक समझौता हुआ है।आईएएस अब भी राज्य और केंद्र की प्रशासनिक तंत्र की रीढ़ है।कई और फ़ायदेमंद रोज़गार के अवसरों के बावजूद भी कम से कम वर्तमान की वार्षिक भर्तियां अतीत के मुक़ाबले बराबर या बेहतर गुणवत्ता की होंगीं।
इसकी कठोर योग्यता-आधारित चयन प्रणाली के साथ, देश के सबसे प्रतिभाशाली लोग समाज में विशेष योगदान के लिए इस सेवा को चुनते हैं।
ऐसे युग में जहां विशेषज्ञ बनाम सामान्य की बहस समय-समय पर हो जाती है,वहां आईएएस ने अपने अतिविशेष क्षेत्र प्रशिक्षण के अवसरों,किसी भी प्रशासनिक समस्या को संभालने,व्यापक अनुभव और इन सबसे ऊपर प्रशासनिक क्षेत्र में अपनी दक्षता साबित की है।