रांचीः एसटी, एससी, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अनुदान मांग पर जवाब देते हुए विभागीय मंत्री चमरा लिंडा ने 2026 में होने वाले परिसीमन का मामला उठा दिया, जिसपर लंबी बहस हुई.मंत्री चमरा लिंडा ने कहा कि 2002 में केंद्र में भाजपा की सरकार थी. तब परिसीमन के तहत छह आदिवासी सीटें घटाने की तैयारी हो चुकी थी. उस वक्त शिबू सोरेन ने पीएम से मिलकर तर्क पेश किया था. उन्होंने कहा था कि आदिवासी जंगल और पहाड़ में रहते हैं. वहां जनसंख्या नहीं घटी है.
मंत्री चमरा लिंडा ।उन्होंने बताया कि सिसई और बिशुनपुर में जनसंख्या नहीं घटी है. जनसंख्या बढ़ रही है शहरों में. वहां सीटों की संख्या घटाएं. तब पीएम ने 2008 में अमेंडमेंट कर दिया. इस वजह से झारखंड बच गया. फिर 2026 में बाद परिसीमन आने वाला है. इसको रोकने के लिए विपक्ष का सहयोग जरुरी है.खतरे में आदिवासी, एनआरसी जरुरी- बाबूलाल मरांडीपरिसीमन का मामला उठते ही नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि एनआरसी कराना जरुरी है. सरकार को पहल करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि 1951 से 2011 के बीच हुए जनगणना के दौरान आखिर आदिवासियों की संख्या क्यों घटी है. दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय की संख्या क्यों बढ़ी है. जाहिर है कि आदिवासी की जनसंख्या घटने पर विधानसभा, लोकसभा की सीटों के साथ-साथ नौकरियों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा.
नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ।बाबूलाल मरांडी ने कहा कि सीट ना घटे, इसके पक्षधर हम भी हैं. लेकिन जब आबादी ही नहीं रहेगी तो आदिवासी एमएलए कैसे बनेगा. आबादी का संतुलन बिगड़ रहा है. इसलिए एनआरसी जरुरी है या राज्य सरकार खुद कमेटी बनाकर जांच कराए.संसदीय कार्यमंत्री ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष के सुझाव पर आपत्ति है. यह चिंता का विषय हो सकता है कि आदिवासी समाज की जनसंख्या घटी है लेकिन मुस्लिम आबादी बढ़ी है, ये चिंता का विषय नहीं होना चाहिए. इस भावना को वापस लिया जाना चाहिए.परिसीमन रोकने में सबका मिला साथ- हेमलाल मुर्मूझामुमो विधायक हेमलाल मुर्मू ने कहा कि उस वक्त सोनिया गांधी, प्रणव मुखर्जी और लालकृष्ण आडवाणी ने आदिवासी हित में माना था कि झारखंड में परिसीमन कमीशन ना भेजा जाए. क्योंकि सीटें घटने से आदिवासी संस्कृति प्रभावित होती. उन्होंने विपक्ष से आग्रह किया कि डिलिमिटेशन को झारखंड में लागू होने से रोकने के लिए पहल करना चाहिए.आरक्षण पर चला सवाल-जवाब का दौरपरिसीमन पर बहस के दौरान मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने बाबूलाल मरांडी पर निशाना साधते हुए कहा कि बिहार में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण था. लेकिन उनके कार्यकाल में यहां आरक्षण 14 प्रतिशत हो गया. वहीं कई जिलों में ओबीसी आरक्षण शून्य हो गया. जब 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है तो किस आधार पर नेता प्रतिपक्ष कह रहे हैं कि आदिवासियों की आबादी घटी है
.मंत्री चमरा लिंडा कह रहे हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में आबादी नहीं घटी है. सिर्फ शहरों में आबादी कैसे घटी. कौन लोग रांची, जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद और हजारीबाग में बाहर से आ गये. वैसे लोगों ने झारखंड की डेमोग्राफी बिगाड़ी है.इसपर बाबूलाल मरांडी ने कहा कि एकीकृत बिहार में आदिवासी को 26 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिलता था. राज्य विभाजन के बाद आरक्षण की व्यवस्था का बदलना था. एससी को 10 प्रतिशत आरक्षण मिला. चूकि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं मिल सकता था, इसलिए ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण मिला. फिर भी 73 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था. ओबीसी को 27 प्रतिशत देने की पैरवी की थी लेकिन कोर्ट में मामला गिर गया. ये सारी बातें फाइल में मौजूद हैं. जिन जिलों में आरक्षण शून्य है वहां 1991 से व्यवस्था लागू है. इसलिए इस तरह का आरोप लगाना कि मेरे शासनकाल में ओबीसी का आरक्षण घटा है, यह सही नहीं है.इस बीच ध्वनिमत से एसटी, एससी, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की अनुदान मांग पारित हो गई. इससे पहले मंत्री चमरा लिंडा ने कहा कि आदिवासी समाज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. अब मांदर की धुन बहुत कम सुनाई देती है. इसलिए सभी आदिवासी बहुल गांवों के लिए मांदर और नगाड़ा वितरित किया जाएगा.