देश की 18वीं लोकसभा में संभावित मंत्रियों के नामों को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं. स्पीकर पद को लेकर भी अभी सस्पेंस बना हुआ है. इस बीच विपक्ष डिप्टी स्पीकर यानी उपसभापति का मुद्दा उठा रहा है. दरअसल, 17वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल में डिप्टी स्पीकर का पद खाली था. 5 सालों के अंतराल के बाद लोकसभा में फिर डिप्टी स्पीकर हो सकता है. आइए जानते हैं कि डिप्टी स्पीकर कैसे चुना जाता है और उनकी क्या जिम्मेदारियां होती है.पिछली लोकसभा में भाजपा 303 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत में थी. उनकी तरफ से ओम बिड़ला को अध्यक्ष चुना गया. लेकिन 5 जून को भंग हुई 17वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल में उपसभापति की नियुक्ति नहीं हुई.
लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का जिक्र स्पीकर के साथ ही संविधान के आर्टिकल 93 में है
संवैधानिक पद है डिप्टी स्पीकरसंविधान के आर्टिकल 93 में कहा गया है, ‘लोकसभा जितनी जल्दी हो सके, दो सदस्यों को स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के रूप में चुनेगी.’ पद के खाली होने पर सदन के किसी अन्य सदस्य को स्पीकर या डिप्टी स्पीकर चुना जाएगा. वहीं, संविधान के आर्टिकल 178 में राज्यों के विधानसभा में डिप्टी स्पीकर के होने की व्यवस्था की गई है.डिप्टी स्पीकर की शक्तियांसंविधान के आर्टिकल 95 के तहत, स्पीकर का पद खाली होने पर या स्पीकर के सदन में मौजूद न होने पर डिप्टी स्पीकर ही सदन के अध्यक्ष की जिम्मेदारियों को पूरा करता है.
उस समय डिप्टी स्पीकर के पास वो सभी शक्तियां होती हैं जो एक स्पीकर के पास होती है. इसमें सदन में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखना और गलत व्यवहार के लिए किसी सदस्य को निलंबित करने के बाद दंडित करने की ताकत भी शामिल है.यह पद स्पीकर के अधीन नहीं होता. वह सीधे सदन के प्रति उत्तरदायी है. यदि उनमें से कोई भी इस्तीफा देना चाहता है, तो उन्हें अपना इस्तीफा सदन को सौंपना होगा, यानी कि स्पीकर अपना इस्तीफा डिप्टी स्पीकर को देगा.
कैसे चुना जाता है डिप्टी स्पीकर?डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तारीख स्पीकर द्वारा तय की जाती है. इस पद का चुनाव आमतौर पर दूसरे सत्र में होता है. हालांकि, नई लोकसभा के पहले सत्र में भी चुनाव कराने पर कोई रोक नहीं है. डिप्टी स्पीकर का चुनाव स्पीकर की तरह ही होता है. यानी कि पार्टी को अपने उम्मीदवार को डिप्टी स्पीकर बनाने के लिए बहुमत की जरूरत होती है. हालांकि, लोकसभा के डिप्टी स्पीकर को विपक्ष से चुने जाने की परंपरा बनी हुई है. 2009 में गठित हुई लोकसभा में कांग्रेस बहुमत में थी. फिर भी भाजपा सांसद करिया मुंडा डिप्टी स्पीकर बने थे.
बिना डिप्टी स्पीकर के सदन में काम कैसे हुआ?स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के अलावा सदन में अध्यक्षों का एक पैनल भी होता है. लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों में इसका जिक्र है. इसके नियम 9 में कहा गया है कि लोकसभा के शुरू होने पर स्पीकर सदस्यों में से अधिकतम 10 चेयरपर्सन के एक पैनल को नामांकित करेगा. स्पीकर और डिप्टी स्पीकर की अनुपस्थिति में सदन की अध्यक्षता इन्हीं में से एक चेयरपर्सन कर सकता है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चेयरपर्सन के पास कोई प्रशासनिक शक्तियां नहीं हैं और न ही वे अपने पद के आधार पर किसी समिति की अध्यक्षता करते हैं. 17वीं लोकसभा में जब स्पीकर अनुपस्थित थे, तब इन्हीं चेयरपर्सन ने संसद की अध्यक्षता की.डिप्टी स्पीकर न होने पर सरकार ने तर्क दिया था कि उपसभापति की कोई ‘तत्काल आवश्यकता’ नहीं है क्योंकि सदन में ‘विधेयक पारित किए जा रहे हैं और चर्चाएं सामान्य तरीके से हो रही हैं’.