नई दिल्ली : किडनी हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है, ये खून को साफ करने से लेकर, खून में रसायनों और द्रव के संतुलन को ठीक बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, किडनी की बीमारियों का संपूर्ण स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर हो सकता है। ये शरीर में विषाक्तता बढ़ाने का भी कारण हो सकती है, इसलिए जरूरी है कि सभी लोग निरंतर किडनी को स्वस्थ रखने वाले उपाय करते रहें। आहार और लाइफस्टाइल को ठीक रखने के साथ ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखना किडनी को स्वस्थ रखने के लिए सबसे आवश्यक माना जाता है।
आंकड़े बताते हैं, दुनियाभर में सभी उम्र के लोगों में किडनी से संबंधित बीमारियों का जोखिम बढ़ता जा रहा है। किडनी को ठीक रखने और इससे संबंधित बीमारियों के खतरे को कम करने के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल मार्च माह के दूसरे गुरुवार को वर्ल्ड किडनी डे मनाया जाता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है, किडनी को ठीक रखने पर विशेष ध्यान देते रहना जरूरी है, क्योंकि जिन लोगों को किडनी रोग है उनमें समय के साथ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं यहां तक कि डिप्रेशन जैसी गंभीर बीमारियों के विकसित होने का भी खतरा हो सकता है।
किडनी रोगियों को हो सकता है डिप्रेशन
क्रोनिक किडनी डिजीज में किडनी की कार्यक्षमता को धीरे-धीरे कम होने लगती है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि जिन लोगों को किडनी की बीमारी होती है और लंबे समय तक बनी रहती है उनमें संभावित रूप से अवसाद और चिंता जैसी समस्याएं हो सकती है। शुरुआती चरणों में, सीकेडी अक्सर कोई लक्षण पैदा नहीं करता है। हालांकि समय के साथ रोगी में उच्च रक्तचाप और सूजन जैसे लक्षण विकसित हो सकते हैं। सीकेडी न सिर्फ किडनी की विफलता का कारण बन सकती है, साथ ही इसके कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का भी खतरा रहता है। आइए जानते हैं कि किडनी की बीमारी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का आपस में क्या संबंध होता है?
रोग-मानसिक स्वास्थ्य का कनेक्शन?
भोपाल में मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं, जिन किडनी रोगियों का डायलिसिस उपचार चल रहा होता है उनमें से 50% लोग चिंता और अवसाद के लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं। सीकेडी की स्थिति किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित कर सकती है। साल 2021 में अध्ययनों की समीक्षा में पाया गया कि सीकेडी वाले 19% लोगों ने भी चिंता विकारों का अनुभव किया। किडनी डिजीज वाले लोगों में मानसिक बीमारी विकसित होने के कई कारण हो सकते हैं।
डॉक्टर सत्यकांत बताते हैं, किडनी रोगियों में मानसिक स्वास्थ्य विकारों के प्रमुख कारण- रोग उपचार पर होने वाला अधिक खर्च, जीवनशैली या कामकाजी जीवन पर प्रतिबंध, सीकेडी के लक्षणों और जटिलताओं के साथ रहने और स्वास्थ्य या भविष्य के बारे में अनिश्चितता की स्थिति शामिल है। किडनी का उपचाप दीर्घकालिक होता है, नियमित रूप से इसपर होने वाला खर्च रोगियों को परेशान करने वाला हो सकता है, ऊपर से रोगी, काफी हद तक परिवार या अन्य सदस्यों पर निर्भर हो जाता है जो कुछ स्थितियों में अपराधबोध का भाव पैदा करने वाली स्थिति हो सकती है।
ब्लड प्रेशर-शुगर को रखें कंट्रोल
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, किडनी बीमारियों के शिकार सभी लोगों को उन उपायों पर गंभीरता से ध्यान देते रहना जरूरी है जिससे इसके लक्षणों को कम करने में मदद मिल सके। विशेषतौर पर जिन लोगों को पहले से डायबिटीज या हार्ट की बीमारी है उन्हें इन स्थितियों को नियंत्रित रखना चाहिए। हाई ब्लड शुगर या ब्लड प्रेशर को किडनी की बीमारियों को बढ़ाने वाला पाया गया है।
किडनी के इलाज के साथ डॉक्टर्स को रोगी के लक्षणों पर ध्यान देते हुए उन्हें आवश्यकता होने पर मनोचिकित्सा के लिए भी सुझाव देना चाहिए।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सीकेडी से पीड़ित व्यक्ति को अगर स्ट्रेस-एंग्जाइटी की दिक्कत बनी रहती है तो उन्हें डॉक्टर से बात करनी चाहिए। स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षण के आधार पर दवा या थेरेपी के माध्यम से इस समस्याओं को कंट्रोल करने में मदद कर सकते हैं। कुछ मरीजों को किडनी के इलाज के साथ-साथ एंटीडिप्रेसेंट दवाओं की भी जरूरत हो सकती है।
मानसिक स्वास्थ्य की समस्या हमारे शरीर को कई प्रकार से नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए जरूरी है कि संपूर्ण स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए मानसिक और शारीरिक दोनों सेहत का ध्यान रखा जाए।