सरगुजा : जल ही जीवन है.हमारी पृथ्वी पर 71 फीसदी हिस्सा जल का है.जिसमें 1 फीसदी हिस्सा ही पीने लायक है. मानव शरीर में भी जल की सबसे बड़ी भूमिका है.ऐसे में हमारे जीवन में जल के महत्व को नकारना नामुमकिन है.लेकिन मौजूदा समय में इंसान ही जल का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है. विकास के नाम पर जल के प्राकृतिक स्त्रोतों को नष्ट किया जा रहा है. साथ ही साथ बढ़ती आबादी और औद्योगिक कचरे ने नदियों और तालाब के जल को दूषित किया है. हम ये भूल चुके हैं कि यदि हमें आने वाले कल को संवारना है तो जल का संरक्षण जरुरी है.इसके बिना मानव सभ्यता और संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती. ईटीवी भारत विश्व जल दिवस के मौके पर जल संरक्षण को लेकर आपको खास जानकारी देने जा रहा है.जिसमें एक युवा साइंटिस्ट लोगों को जल संरक्षण करने की बड़ी प्रेरणा दे रहे हैं.
युवा साइंटिस्ट का कमाल : सरगुजा में एक ऐसा युवा साइंटिस्ट है,जिसे लोग अब जल पुरुष कहने लगे हैं.आप सोच रहे होंगे कि आधुनिकता और साइंस के जमाने में एक साइंटिस्ट को जल पुरुष जैसा प्राचीन नाम देना कहां तक सही है.लेकिन जो कारनामा इन्होंने किया है,उसे जानने के बाद आपको यकीन हो जाएगा कि आखिर क्यों इन्हे लोग जल पुरुष कह रहे हैं.इस वैज्ञानिक ने अपनी सूझबूझ से जल संरक्षण को नई दिशा दी है. इनके इजाद किए हुए तरीके ने ना सिर्फ जल से गंदगी को दूर किया,बल्कि बड़े पैमाने में वाटर रिसाइकिल करने का आसान तरीका ढूंढ निकाला.आईए जानते हैं आखिर कौन हैं ये युवा साइंटिस्ट
.जल संरक्षण की अनोखी पहल ।जल संरक्षण की नई सोच : अंबिकापुर के बायोटेक साइंटिस्ट डॉ. प्रशांत ने जल संरक्षण के लिए गहन रिसर्च किया है. प्रशांत ने ग्राउंड वाटर से हटकर धरती के ऊपर के पानी को संरक्षित करने की नई सोच लाई.इसके लिए प्रशांत ने अनुपयोगी हो चुके गंदे तालाब के जल को शुद्ध करने का तरीका ढूंढा. डॉ प्रशांत ने 13 साल की मेहनत से एक आविष्कार किया जिसने कमाल कर दिया. प्रशांत ने कई तरह के माइक्रोब्स के कम्पोजिशन से एक कंसोटिया तैयार किया जिसे ई बॉल का नाम दिया गया. इस छोटी सी ई बॉल ने देखते ही देखते गंदगी से बजबजाते तालाबों को साफ कर दिया. यही नहीं जिन नालियों से दुर्गन्ध आती थी,उन नालियों में इस ई बॉल को डालने के बाद पानी साफ हो गया.ई बॉल ट्रीटमेंट के बाद जब गंदे तालाब के पानी का बीओडी, सीओडी और पीएच लेवल चेक किया गया तो वो पानी साइंटिफिकली पीने लायक शुद्ध था.डॉ प्रशांत ने ये प्रयोग अंबिकापुर नगर निगम के सहयोग से शहर के तालाब और नालियों में किए. प्रयोग की सफलता इस तरह परवान चढ़ी कि देश भर के लोगों ने अपने तालाब की सफाई के लिए डॉ प्रशांत के ई बॉल का इस्तेमाल करना शुरु किया.
लगातार इनकी वाटर रिसाइकिल करने वाली खबरों को प्रसारित करने पर ही अन्य राज्य के लोगों तक ई बॉल की जानकारी पहुंची. खुद डॉक्टर प्रशांत ने ईटीवी भारत का आभार जताते हुए कहा कि झारखंड के रांची में बड़ा तालाब की गन्दगी का मामले उठने के बाद वहां की निकाय ने उनसे संपर्क किया था. आज वो बड़ा तालाब को साफ करने की मुहिम के अंतिम चरण में हैं.ई बॉल अन्य उत्पादों से क्यों है अलग : वैसे तालाब या नाली को साफ करना कोई बड़ी बात नही है. केमिकल्स और मशीनरी के उपयोग से भी इसे साफ किया जा सकता है. लेकिन इसमें बड़ा खर्च और जलीय जीव और पर्यावरण दोनों की हानि होती है. वहीं ऐसी सफाई सिर्फ टेम्परेरी व्यवस्था होती है.एक एकड़ तालाब को साफ करने में 2 लाख से 3 लाख तक का खर्च आता है. लेकिन ई बॉल इको फ्रेंडली है. इससे जलीय जीव या पर्यावरण को कोई नुकसान नही है. दूसरा ये बेहद सस्ता है. करीब एक एकड़ के तालाब को साफ करने का एक साल का खर्च महज 7 हजार आता है.
इतना ही नही इसकी एक और खासियत है. जो इसे सबसे ज्यादा खास बनाती है. ई बाल में मौजूद माइक्रोब्स पानी में जाने के बाद खुद से अपनी कॉलोनी बनाते हैं. जो तेजी से बढ़ते हैं. मतलब एक साल के ट्रीटमेंट से तालाब साफ करने के बाद वर्षों तक उसमें मौजूद माइक्रोब्स खुद ही तालाब को साफ रखने का काम करते रहेंगे.छतीसगढ़ पहले मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था. ऐसा नहीं है कि सरकारों ने प्रयास नहीं किया. मध्यप्रदेश के समय से ही सरकार जल संरक्षण पर काम करती आ रही है. कई लोग हैं जो इस दिशा में काम करते हैं. लेकिन सिर्फ भू जल संरक्षण पर फोकस किया गया. जबकि जमीन केऊपर भी काफी मात्रा में जल है जो गंदा होने के कारण उपयोग में नहीं आ रहा है. दुनिया भर में 71% जल भाग है. जिसमें 97% पानी समुद्री हैं. जो काम का नही है. कुल 1% पानी की पीने योग्य है.
ऐसी स्थिति में अगर मानव जाति जल संरक्षण नहीं करेगी तो आने वाले समय में स्थिति भयावह होगी- डॉ प्रशांत, बायोटेक साइंटिस्टप्रशांत चला रहे जल संरक्षण की मुहिम : डॉक्टर प्रशांत की माने तो वो व्यक्तिगत तौर पर एक मुहिम चला रहे हैं. जब भी घर में कोई मेहमान आता है तो वो उन्हें गिलास भरकर पानी नही देते हैं बल्कि आधा गिलास पानी देते हैं. क्योंकि अगर सामने वाले और जरूरत होगी तो दोबारा पानी दिया जा सकता है. लेकिन अगर आपने एक गिलास पानी दे दिया और एक शिप पीने के बाद उस पानी को छोड़ दिया गया तो वो बर्बाद हो जाएगा. इसलिए डॉ शर्मा ने सभी से अपील की है कि वो भी इस तरह की मुहिम से जुड़कर जल संरक्षण करें