मैं मुख्यतः तीन बातोंकी ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं । पहली यह कि भारतका स्थान जगत में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और सदैव ऐसे ही रहा है । दूसरी बात यह कि भारत वर्तमान जगत का सारभूत स्वरूप ही है । समस्त जगतको भयभीत करनेवाले अनेक प्रमुख प्रश्न बडी तीव्रतासे आज भारत के समक्ष खडे हैं तथा भारतीय जनता और भारत शासन उनके समाधान के लिए प्रयत्नरत हैं । तीसरी बात यह कि भारतमें जीवनके प्रति एक ऐसा दृष्टिकोण है और मानवीय व्यवहार सम्भालने की एक ऐसी भूमिका है, जो वर्तमान स्थितिमें अत्यन्त उपकारक (लाभकारी) सिद्ध होगी; वह भी केवल भारतके लिए नहीं; अपितु सम्पूर्ण जगतके लिए !
अतिसुन्दर और इसलिए अत्यन्त परिश्रमद्वारा साध्य होनेवाले इस आदर्श अनुसार (जो आदर्श आपकी भारतीय परम्पराका उत्तराधिकार है), जीवनको उन्नत करनेमें यदि भारत कभी असफल हो जाए, तो सम्पूर्ण मनुष्यजाति का भावी कल्याण बाधित होगा । भारतपर इतना महान आध्यात्मिक दायित्व है ।’ – सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ अर्नाल्ड टॉयन्बी
२. मैक्समूलर:- ‘यदि मुझे बताना हो कि सम्पत्ति, शक्ति एवं प्राकृतिक सौंदर्य, इन सबसे परिपूर्ण देश कौनसा है, तो मैं भारतका नाम लूंगा । मुझे कोई प्रश्न पूछे कि किस देशके मनुष्योंने उत्कृष्ट ईश्वरीय देनको पूर्णरूपसे विकसित किया है, जीवनकी जटिल समस्याओंपर गहन चिन्तन कर उनपर उपाय निकाले हैं और जो प्लेटोे तथा कान्ट द्वारा दी गई शिक्षाके अभ्यासियोंका भी ध्यान आकर्षित करनेमें सक्षम है, तो मैं उत्तर दूंगा ‘भारत’ । हम यूरोपियन लोग अपने जीवनमें ग्रीक, रोमन तथा यहूदी लोगोंकी विचारधाराओंका अनुकरण करते हैं । इस जीवन को अधिक सफल, परिपूर्ण, वास्तविक रूपसे मानवतावादी और शाश्वत बनाना हो, तो कौनसे साहित्यका आधार लिया जाए, यदि ऐसा प्रश्न कोई पूछे, तो मैं इसके उत्तरमें भी ‘भारतीय’ ही कहूंगा । – प्राध्यापक मैक्सम्यूलर (महारानी विक्टोरियाको १८५८ में प्रोफेसर मैक्सम्यूलर द्वारा भेजे गए एक पत्रका अंश)