इस साल के अंत तक होनेवाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बहुत सारे सांसदों को विधायक पद के लिए चुनावी रणक्षेत्र में उतार दिया है। यह बात आम जनता के साथ साथ चुनावी विश्लेषकों को भी हैरत में डाल रही है । पर देखा जाए तो भाजपा यह रणनीति बीते सालों से आजमाती रही है और भाजपाइयों के अनुसार इसके आशातीत परिणाम प्राप्त हुए हैं । विगत वर्षों में पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के विधानसभा में भी भाजपा ने यही रणनीति अपनाई थी ।
इस साल के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान में यही दांव आजमाने का फैसला किया है। तीनों राज्यों में अब तक जारी प्रत्याशियों की लिस्ट में इसकी झलक भी दिखी है। तीनों चुनावी राज्यों में भाजपा ने अब तक कुल 18 सांसदों को मैदान में उतारा है। मध्य प्रदेश में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को टिकट दिया गया है। वहीं, राजस्थान में बीजेपी ने 7 सांसदों को विधानसभा चुनाव का टिकट दिया है, जबकि छत्तीसगढ़ में 4 सांसदों को विधायकी का उम्मीदवार बनाया गया है।
त्रिपुरा में केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक ने 68 हजार मतों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी, तो वहीं पश्चिम बंगाल में पांच में से तीन सांसद विधानसभा का चुनाव हार गए थे।भाजपा के मुताबिक भले हार मिली, लेकिन इस दांव का फायदा भी मिला । बीजेपी ने यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के खिलाफ केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा था। हालांकि बीजेपी का मानना है कि केंद्र की राजनीति से राज्यों में भेजे गए नेता सिर्फ खुद की जीत ही सुनिश्चित नहीं करते बल्कि आसपास के इलाकों में भी पार्टी उम्मीदवारों को फायदा पहुंचाते हैं। बीजेपी का मानना है कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को इस दांव का फायदा मिला था।
उत्तर प्रदेश की करहल सीट पर केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से हार गए, लेकिन उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री को अच्छी टक्कर दी। नतीजा ये भी हुआ कि मुलायम सिंह यादव के जमाने से ही समाजवादी पार्टी का गढ़ रही मैनपुरी सीट के साथ-साथ भोगांव सीट पर भी बीजेपी का कब्जा हो गया।
पश्चिम बंगाल में भले ही केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, लोकसभा सांसद लॉकेट चटर्जी और राज्यसभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता विधानसभा चुनावों में खुद नहीं जीत सके, लेकिन उन सभी के प्रभाव से आसपास के क्षेत्रों में कई बीजेपी उम्मीदवार की किस्मत चमक गई।
भाजपा को अपनी इस रणनीति का पश्चिम बंगाल में जबरदस्त फायदा मिला । पश्चिम बंगाल में भाजपा 3 विधायकों से 77 विधायकों वाली पार्टी बन गई। भाजपा के इस प्रदर्शन ने राजनीतिक विश्लेषकों को भी हैरान कर दिया । 2023 के चुनावों में भी भाजपा यही कर रही और उसे उम्मीद है कि परिणाम उसके पक्ष में आएगा ।छत्तीसगढ़ में भाजपा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ सांसद विजय बघेल को टिकट देकर उत्तर प्रदेश वाला दांव खेला है । भाजपा को लगता है कि उसके इस दांव से भूपेश बघेल अपनी पाटन सीट पर ही उलझ कर रह जायेंगे और उन्हें प्रदेश की अन्य सीटों पर ज्यादा समय देने का मौका नही मिलेगा।