नई दिल्ली : साल के शुरुआती महीने में लोहड़ी की पर्व मनाया जाता है। यह उत्तर भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है, जिसे खासतौर पर पंजाब और हरियाणा में मुख्य रूप से मनाते हैं। देशभर में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति से एक दिन पहले शाम को धूमधाम से लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं। इस दिन अग्नि के चारों ओर खड़े होकर लोकगीत गाए जाते हैं। वहीं नए धान के साथ खील, मक्का, गुड़, रेवड़ी और मूंगफली अग्नि में अर्पित किया जाता है। साथ ही अग्नि की परिक्रमा करते हैं। यह त्योहार फसल से जुड़ा है, जो सिख लोग फसल पकने की खुशी में मनाते हैं। हालांकि लोहड़ी मनाने के तीन कारण प्रचलित हैं। इसकी कुछ पौराणिक मान्यताएं हैं। आइए जानते हैं इस वर्ष लोहड़ी कब है और लोहड़ी क्यों मनाई जाती है।
लोहड़ी कब है?
हर साल लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले होता है। इस वर्ष मकर संक्रांति 15 जनवरी को है और लोहड़ी 14 जनवरी को मनाई जा रही है।
क्यों मनाई जाती है लोहड़ी?
लोहड़ी मनाने को लेकर कई मान्यताएं हैं। एक पौराणिक मान्यता प्रजापति दक्ष और उनकी पुत्री सती से जुड़ी है। राजा दक्ष ने भगवान शिव का तिरस्कार करते हुए उन्हें यज्ञ में शामिल नहीं किया तो पति की उपेक्षा देखकर माता सती ने उसी अग्निकुंड में प्राणों की आहुति दे दी। मान्यता है कि तब से प्राश्चित स्वरूप लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं। इसी कारण लोहड़ी के मौके पर विवाहित कन्याओं को घर पर आमंत्रित करके उनका सम्मान किया जाता है।
लोहड़ी मनाने की दूसरी वजह
लोहड़ी से जुड़ी दूसरी मान्यता श्रीकृष्ण की है। कथा है कि मकर संक्रांति की तैयारियों में सभी गोकुल वासी व्यस्त थे और कंस बाल कृष्ण को मारने के लिए साजिश रच रहा था। संक्रांति से एक दिन पहले कंस ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल भेजा। कान्हा ने खेल-खेल में ही लोहिता राक्षसी को मार दिया। इसी खुशी में लोहड़ी का पर्व मनाते हैं।
लोहड़ी मनाने का तीसरा कारण
लोहड़ी को लेकर तीसरी मान्यता अकबर के शासन काल की है। कहते हैं अकबर के शासन काल में दुल्ला भट्टी नाम का शख्स पंजाब प्रांत में रहता था। वहीं संदल बार नाम की जगह थी, जहां गरीब लड़कियों को अमीरों को बेचा जाता था। गांव के ठेकेदार ने किसान सुंदर दास की दो बेटियों सुंदरी और मुंदरी से शादी के लिए उसे धमकाया। जब दुल्ला भट्टी को यह बात पता चली तो उसने ठेकेदार के खेत को जला दिया और किसान की मर्जी से उसकी दोनों बेटियों की शादी कराई। तब से लोहड़ी का पर्व मनाया जाने लगा।