नई दिल्ली : कैंसर, वैश्विक स्तर पर मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। हर साल लाखों लोगों की मौत कैंसर के कारण हो जाती है। भारत के नजरिए से बात करें तो यहां मुंह में होने वाले कैंसर के मामले काफी ज्यादा रिपोर्ट किए जाते रहे हैं। अध्ययनकर्ता कहते हैं, भारतीय उपमहाद्वीप में मुंह का कैंसर, शीर्ष तीन प्रकार के कैंसर में से एक है।
भारत की प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 20 लोगों में इस कैंसर का निदान होता है, ये देश में सभी कैंसर का 30% से अधिक हिस्सा है। हर साल लगभग 77,000 नए मामले सामने आते हैं और 52,000 मौतें रिपोर्ट की जाती हैं। हालांकि अब इस कैंसर का पता लगाना और समय पर उपचार कराना आसान होने वाला है।
मुंह के कैंसर का समय रहते पता लगाने के लिए वैज्ञानिक एक ऐसा लॉलीपॉप बना रहे हैं जो आसानी से सैंपल एकत्रित करने में मददगार हो सकता है। अब तक मुंह के कैंसर का पता लगाने के लिए नाक या मुंह के माध्यम से कैमरा डालकर जांच और सैंपल प्राप्त किया जाता रहा है, जो काफी असुविधाजन होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये लॉलीपॉप बड़ी आसानी से सैंपल एकत्र करने में मददगार हो सकता है, जिससे कैंसर के निदान की प्रक्रिया आसान हो जाएगी। समय पर कैंसर का पता चलने से इलाज प्राप्त करने में देरी नहीं होगी और मृत्युदर को भी कम किया जा सकेगा।
लॉलीपॉप से ओरल कैंसर का हो सकेगा निदान
बर्मिंघम यूनिवर्सिटी द्वारा साझा रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का कहना है, मुंह के कैंसर का पता लगाने वाले पारंपरिक तरीके प्रभावी होते हुए भी अधिक समय लेने वाले और दर्दकारक होते हैं, साथ ही इसके लिए विशेष कौशल की भी आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, जिस लॉलीपॉप को तैयार करने पर काम चल रहा है उसके माध्यम से सैंपल कलेक्शन काफी आसान हो सकेगा।
कैंसर रिसर्च यूके और इंजीनियरिंग एंड फिजिकल साइंसेज रिसर्च काउंसिल (ईपीएसआरसी) के सहयोग से इस ‘लॉलीपॉप’ को विकसित करने पर काम चल रहा है।
सैंपल एकत्र करना होगा आसान
यूके स्थित बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और शोधकर्ता डॉ. रुचि गुप्ता बताती हैं, स्मार्ट हाइड्रोजेल नामक सामग्री से हमारी टीम फ्लेवर्ड ‘लॉलीपॉप’ का प्रोटोटाइप बना रही है। स्मार्ट हाइड्रोजेल प्रोटीन जैसे बड़े अणुओं को आसानी से पकड़ने में मददगार पाए गए हैं। बाद में इससे प्राप्त सैंपल का प्रयोगशाला में विश्लेषण करके ये पता लगाया जा सकेगा कि मुंह के भीतर कुछ असामान्य या कैंसरकारक तो नहीं है?
लॉलीपॉप चूसने से लार का नमूना हाइड्रोजेल में स्थानांतरित हो जाता है, इसके माध्यम से उन प्रोटीन का पता लगाया जा सकेगा जो कैंसर कारक हो सकते हैं।
कठिन और कष्टकारक प्रक्रिया से मिलेगी मुक्ति
इस परियोजना को कैंसर रिसर्च यूके और ईपीएसआरसी से 350,000 की वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है। कैंसर रिसर्च यूके में अनुसंधान और नवाचार के कार्यकारी निदेशक डॉ. इयान फॉल्क्स कहते हैं, मुंह के कैंसर के निदान के लिए बायोप्सी और नासोएंडोस्कोपी वैसे तो गोल्ड स्टैंडर्ड मानक रहे हैं, लेकिन इसके लिए बहुत कौशल की आवश्यकता होती है और यह प्रक्रिया रोगियों के लिए कष्टकारक और महंगी भी होती है।
ओरल कैंसर का समय पर पता चलने से कम होगी मृत्युदर
वैज्ञानिकों ने बताया, अभी ये प्रोजेक्ट शुरुआती चरणों में है। हालांकि लॉलीपॉप विकसित होने और ह्यूमन ट्रायल में अगर इसके परिणाम बेहतर देखे गए तो निश्चित ही ये भविष्य में ओरल कैंसर के समय रहते निदान की दिशा में बड़ी कामयाबी हो सकती है। आज भी दुनियाभर में बड़ी संख्या में मुंह या अन्य प्रकार के कैंसर के कारण लोगों की मौत सिर्फ इस वजह से हो जाती है क्योंकि इन कैंसर का पता ही तब चल पाता है जब ये आखिरी के स्टेज में पहुंच चुकी होती हैं।
कैंसर का अगर समय पर पता चल जाए तो इलाज आसान हो जाता है और रोगी के जीवित रहने की संभावना भी बढ़ जाती है।






