रायपुर: आदिवासी समुदाय ही एक ऐसा समुदाय है जो प्रकृति के अनुरूप चलता है। उनके रीति रिवाज उनके कामकाज उनके परंपराएं सभी प्रकृति से जुड़े हुए हैं। आज हम आपको बता रहे हैं की प्रकृति से जुड़े ऐसे ही समुदायों के बारे में जो अपने दैनिक जीवन की डोर भी कैसे विश्वास पर टिका के रखते है। बस्तर को अक्सर समृद्ध विरासत और प्राकृतिक संपदा के साथ भारत के आदिवासी गढ़ के रूप में जाना जाता है। मध्य भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में इस जिले की लगभग 70 प्रतिशत आबादी आदिवासी है। बस्तर क्षेत्र की प्रमुख जनजातियों में गोंड, अभुज मारिया, भात्रा, हलबा, धुरवा, मुरिया और बाइसन हॉर्न मारिया शामिल हैं।
इस जनजाति के युवक और युवतियां लिविंग में रहते हैं और एक दूसरे को मनचाहा साथी चुनने के लिए वह इस परंपरा का निर्वाहन कर रहे हैं। इस परंपरा को “घोटुल” नाम की परंपरा से भी जाना जाता है इस परंपरा में आदिवासी मिट्टी की झोपड़ी बनाते हैं और उसमें लड़के लड़कियां जाकर नाच गाना करते हैं इस दौरान ही लड़की लड़कियों को एक दूसरे के करीब लाने का प्रयास किया जाता है। साथ ही इस परंपरा के अंतर्गत लड़के बांस की कंगी बनाते हैं और जिस लड़की को वह लड़का पसंद आता है उसे कंगी को चुरा लेती है फिर वह उस लड़के से प्यार का इजहार कर देती और दोनों इस झोपड़ी में साथ रहकर मानसिक और शारीरिक रूप से एक दूसरे के हो जाते हैं।